बुधवार, 19 जनवरी 2011

नियमों से खिलवाड़

उस दिन मैं मेट्रो का इंतजार कर रहा था। तभी नजर पड़ी एक युवा जोड़े पर। मेट्रो का पहला कोच महिलाओं के लिए आरक्षित है। वह जोड़ा वहीं पर खड़ा था। गार्ड लड़के से वहां से निकलने के लिए कह रहा था। मगर लड़की उसे वहां से जाने नहीं दे रही थी। गार्ड खिसियानी हंसी के साथ उनसे गुजारिश कर रहा था, मगर लड़की लगातार उससे बहस किए जा रही थी। आसपास खड़ी महिलाएं देख रही थीं। मगर कोई कुछ बोल नहीं रही थीं।
मैंने उनसे पूछा- क्या बात है? लड़की थोड़ी हैरान हुई, मगर कुछ नहीं बोली। गार्ड ने कहा- सर, मैं इनसे कह रहा हूं कि यह कोच केवल महिलाओं का है। यह अपने साथ इस लड़के को उस कोच में ले जाना चाहती हैं। मैंने लड़की से कहा- जब यह आपसे कह रहा है कि यह कोच केवल महिलाओं का है तो आप क्यों नहीं इसकी बात मानती। लड़की ने जवाब दिया- आप अपना काम कीजिए। मैंने कहा- काम तो करूंगा, मगर यह भी बता दूं कि आप गलत कर रही हैं? लड़की बोली- क्या गलत है? मैंने कहा- यह कोच महिलाओं का है, आप किसी पुरुष को उसमें ले जाना चाहती हैं। लड़की ने तपाक से कहा- यह मेरा बॉयफ्रेंड है। जब किसी और को ऐतराज नहीं है, तो आप क्यों बीच में पड़ रहे हैं। मैंने कहा- नियम-कानून भी तो कोई चीज है।
अब लड़की का पारा चढ़ गया। बोली- इतनी बातें कह रहे हैं, आप कौन हैं? मैने विनम्रता से कहा- मैं पत्रकार हूं। अपना फर्ज समझकर आपको समझा रहा हूं। सरकार ने आपकी हिफाजत के लिए ही यह नियम बनाया है आपको उसका पालन करना चाहिए। लड़की बोली- यह तो बस मेरे साथ कोच में खड़ा रहेगा। मैंने कहा- अगर आप जैसी 20 से 30 पर्सेंट लड़कियां भी अपने बॉयफ्रेंड को बातचीत के लिए महिलाओं के कोच में ले जाना शुरू कर दें तो फिर उस कोच का औचित्य क्या रहा जाएगा। तभी एक पुलिस वाला आ गया। मैंने उसे सारी बातें बताई। उसने लड़की से कहा- अपने बॉयफ्रेंड के साथ जाना है, जनरल कोच में जा। जी भर के बातचीत कर। कौन रोकता है। काहे झमेला कर रही है। तब लड़का-लड़की भुनभुनाते हुए वहां से चल दिए।
जाते-जाते लड़की अंग्रेजी में यह कहना नहीं भूली- छोटी मानसिकता है इनकी। पता नहीं कब सुधरेंगे। जाते-जाते पुलिस वाले ने एक बड़ी बात कही- बुरा मत मानिए, चाहे कानून तोड़ने की बात हो या भ्रष्टाचार की, सबकी शुरुआत आम आदमी से होती है। अगर मैंने इस लड़की को कानून तोड़ने के लिए गिरफ्तार कर लिया होता तो इसके परिवार वाले किसी अफसर या नेता को फोन कर देते। हमें उनका फोन आ जाता, हमें छोड़ना पड़ता। बदनाम हम होते। अगर आम आदमी सुधर जाए तो सब कुछ सुधर जाएगा। मैं यही सोचता रहा कि हम पहले सिस्टम से सुविधाओं की मांग करते हैं फिर उन्हीं का दुरुपयोग शुरू कर देते हैं। उस लड़की ने समाज से यही मानसिकता हासिल की।

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