बड़े-बड़े साधन होने के बाद भी आदमी भयभीत है। बड़ी सुरक्षा व्यवस्था है, बहुत धन है, बहुत बाहुबल है, बहुत लोग हैं साथ में उसके बाद भी आदमी भयभीत है। हमें निर्भय कोई नहीं कर सकता दुनिया में। भागवत कथा में एक प्रसंग है।
परीक्षित को शुकदेवजी कथा सुना रहे थे। जैसे ही कथा आरंभ हुई और भागवत के श्लोक आए तब देवताओं ने उन्हें सुने। उन्होंने विचार किया ये तो बहुत अद्भुत श्लोक हैं। ऐसे श्लोक तो हमारी पूंजी होना चाहिए। कथा चल रही थी, देवता दौड़कर नीचे आए। उन्होंने कहा- कृपया इन्हें आप हमें दे दीजिए, ये स्वर्ग की पूंजी हैं। शुकदेव बोले-परन्तु यजमान ये हैं, मैं इनको सुना रहा हूं।
देवताओं ने परीक्षित से कहा-तुम्हारी समस्या यह है कि सात दिन बाद तुम्हें तक्षक आकर डसेगा। तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। इसी कारण तुम यह भागवत सुन रहे हो। एक काम करो, हम तुम्हें अमृत देते हैं। भागवत और उसके श्लोक हमें दे दो, अमृत तुम ले लो। तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी। परीक्षित ने बड़ा सुंदर उत्तर दिया। देवताओं! मैं अमृत लेकर क्या करूंगा? अधिक से अधिक अमर हो जाऊंगा, पर निर्भय नहीं हो सकता। निर्भय मुझे यह कथा ही करेगी। एक बार यदि मैंने भागवत का पान कर लिया तो फिर मैं निर्भय हो जाऊंगा।
परीक्षित का उत्तर सुन देवता निरूत्तर हो गए। ऐसा हुआ भी। जब मृत्यु आई, तक्षक आया, तब परीक्षित ने कहा था मैं खड़ा हूं, मैं स्वयं अपनी मृत्यु देखना चाहता हूं, क्योंकि देह और आत्मा का अंतर समाप्त हो गया अब। अब मुझे मालूम है जो कुछ भी होना है इस शरीर के साथ होना है। उस दिन पहली बार मृत्यु शरमा गई, थक गई, दूर खड़ी हो गई। मृत्यु ने कहा-अब किसे मारें? मृत्यु का तो सारा मजा ही भय में है। भय ही समाप्त हो गया। कथा आदमी को निर्भय करती है।
परीक्षित को शुकदेवजी कथा सुना रहे थे। जैसे ही कथा आरंभ हुई और भागवत के श्लोक आए तब देवताओं ने उन्हें सुने। उन्होंने विचार किया ये तो बहुत अद्भुत श्लोक हैं। ऐसे श्लोक तो हमारी पूंजी होना चाहिए। कथा चल रही थी, देवता दौड़कर नीचे आए। उन्होंने कहा- कृपया इन्हें आप हमें दे दीजिए, ये स्वर्ग की पूंजी हैं। शुकदेव बोले-परन्तु यजमान ये हैं, मैं इनको सुना रहा हूं।
देवताओं ने परीक्षित से कहा-तुम्हारी समस्या यह है कि सात दिन बाद तुम्हें तक्षक आकर डसेगा। तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। इसी कारण तुम यह भागवत सुन रहे हो। एक काम करो, हम तुम्हें अमृत देते हैं। भागवत और उसके श्लोक हमें दे दो, अमृत तुम ले लो। तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी। परीक्षित ने बड़ा सुंदर उत्तर दिया। देवताओं! मैं अमृत लेकर क्या करूंगा? अधिक से अधिक अमर हो जाऊंगा, पर निर्भय नहीं हो सकता। निर्भय मुझे यह कथा ही करेगी। एक बार यदि मैंने भागवत का पान कर लिया तो फिर मैं निर्भय हो जाऊंगा।
परीक्षित का उत्तर सुन देवता निरूत्तर हो गए। ऐसा हुआ भी। जब मृत्यु आई, तक्षक आया, तब परीक्षित ने कहा था मैं खड़ा हूं, मैं स्वयं अपनी मृत्यु देखना चाहता हूं, क्योंकि देह और आत्मा का अंतर समाप्त हो गया अब। अब मुझे मालूम है जो कुछ भी होना है इस शरीर के साथ होना है। उस दिन पहली बार मृत्यु शरमा गई, थक गई, दूर खड़ी हो गई। मृत्यु ने कहा-अब किसे मारें? मृत्यु का तो सारा मजा ही भय में है। भय ही समाप्त हो गया। कथा आदमी को निर्भय करती है।
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