शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

ईमानदारी

मैं सरकारी दफ्तर में खडा था और समझ में नहीं आ रहा था कि मेरी यह फाइल चल क्यों नहीं रही जबकि इसे बगल वाले बाबू के पास ही जाना है। अरे आप कैसे सरकारी कागज छू सकते हैं, बाबू बोला जब मैंने यह कहा कि इसमें क्या है मैं रख देता हूं। - बाहर चपरासी राम प्रसाद बेंच पर बैठा होगा उसे कह दीजिये। बाबू फिर बोला।।
बाहर जब मैंने राम प्रसाद से कहा तो वह बोला, इसमें दो पहिये भी तो लगाइये चलेगी। मैंने झिझकते हुये उसे दस का नोट दिया तो वह देखने लगा और बोला, और नहीं? मेरे नकारात्मक में सिर हिलाने पर फिर बोला, चलिये पहिले आप का काम कर दें। मेरी जान में जान आई। मैं बाबू से काम कराके गलियारे से होता हुआ सीढी तक पहुंच गया तभी पीछे से बाबू-बाबू की आवाज आई। मैंने पलट के देखा तो राम प्रसाद हांफता-कांखता आ रहा था, अरे बाबू, बाकी के आठ रुपये तो लेते जाओ।।
मैंने कहा, वो कैसे? वह कुछ रुक करके बोला, लगता है नये हो, रेट नहीं मालूम। फाइल इस मेज से उस मेज तक जाने के लिये दो पहियों की जरूरत होती है, यानी दो रुपये। हम लोग कोई ऐसे ही थोडे काम करते हैं, बाबू रेट के हिसाब से ईमानदारी से काम करते हैं।।
[अजय मोहन जैन]

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