धनीराम नामक एक सेठ बेहद कंजूस था। वह भिखारी तक को कभी एक पैसा नहीं देता था। उसकी इस आदत के कारण लोग उसे नापसंद करते थे। सेठ जिससे भी बात करने की कोशिश करता, वही उससे दूर चला जाता। उसे लगता कि शायद लोग उसकी धन-दौलत से जलते हैं, इसलिए उससे बातें करना पसंद नहीं करते। एक दिन मंदिर के निर्माण कार्य के लिए सभी से चंदा वसूला जा रहा था। न जाने उस दिन धनीराम के मन में क्या आया कि उसने रुपयों से भरी थैली पुजारी को दे दी। यह देखकर वहां उपस्थित सभी लोग हैरान रह गए। उस दिन के बाद से धनीराम जहां भी निकलता, लोग उसका हालचाल पूछते और आदर देते।
यह देखकर एक दिन सेठ फिर पुजारी के पास पहुंचा और बोला, 'पुजारी जी, देखा लोगों में धन का कितना मोह है। पहले वे मुझसे सीधे मुंह बात नहीं करते थे किंतु उस दिन मैंने रुपयों से भरी थैली क्या दी कि अब सब मुझसे बात करने को आतुर रहते हैं। दौलत देखते ही सब बदल गए।' इस पर पुजारी ने मुस्कराते हुए कहा, 'सेठ जी, आपका सोचना गलत है। लोग आपका धन देखकर नहीं बदल गए हैं। उन्हें यह लगने लगा है कि आप बदल गए हैं। आपके भीतर दान की भावना आ गई है। धन तो आपके पास पहले भी इतना ही था किंतु आपके अंदर दान करने की भावना नहीं थी। वास्तव में यह महत्व दान का है।' यह सुनकर धनीराम दंग रह गया। उसने संकल्प किया कि अब वह हर जरूरतमंद की मदद करेगा।
यह देखकर एक दिन सेठ फिर पुजारी के पास पहुंचा और बोला, 'पुजारी जी, देखा लोगों में धन का कितना मोह है। पहले वे मुझसे सीधे मुंह बात नहीं करते थे किंतु उस दिन मैंने रुपयों से भरी थैली क्या दी कि अब सब मुझसे बात करने को आतुर रहते हैं। दौलत देखते ही सब बदल गए।' इस पर पुजारी ने मुस्कराते हुए कहा, 'सेठ जी, आपका सोचना गलत है। लोग आपका धन देखकर नहीं बदल गए हैं। उन्हें यह लगने लगा है कि आप बदल गए हैं। आपके भीतर दान की भावना आ गई है। धन तो आपके पास पहले भी इतना ही था किंतु आपके अंदर दान करने की भावना नहीं थी। वास्तव में यह महत्व दान का है।' यह सुनकर धनीराम दंग रह गया। उसने संकल्प किया कि अब वह हर जरूरतमंद की मदद करेगा।
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