गुरुवार, 20 जनवरी 2011

क्रोध ही राक्षस

एक बार कृष्ण, बलराम और सात्यकि एक घने जंगल में पहुंचे। वहां रात हो गई, इसलिए तीनों ने जंगल में ही रात बिताने का निर्णय लिया। जंगल बहुत घना और खतरनाक था। उसमें अनेक हिंसक जानवर रहते थे। इसलिए तय किया गया कि सब मिल कर बारी- बारी से पहरा देंगे। सबसे पहले सात्यकि की बारी आई, रात के पहले पहर में वे जग कर निगरानी करने लगे। कृष्ण और बलराम सोने चले गए।
उसी समय एक भयानक राक्षस आया और सात्यकि पर आक्रमण कर दिया। सात्यकि बहुत बलवान थे। राक्षस के आक्रमण से उन्हें बड़ा गुस्सा आया। क्रोध में आ कर उन्होंने भी पूरे बल के साथ उस राक्षस पर आक्रमण कर दिया। मगर सात्यकि को जितना अधिक क्रोध आता, उस राक्षस का आकार उतना ही बड़ा हो जाता। कुछ देर के बाद राक्षस अदृश्य हो गया। दूसरे पहर में बलराम पहरा देने उठे।
जब कृष्ण और सात्यकि सो गए तो बलराम के साथ भी वैसा ही हुआ, जैसा सात्यकि के साथ हुआ था। तीसरे पहर में कृष्ण पहरा दे रहे थे। राक्षस फिर आया। कृष्ण हंसते-हंसते उसका मुकाबला करने लगे। उन्हें उस पर क्रोध नहीं आया। राक्षस जितनी बार आक्रमण करता, कृष्ण उतनी बार मुस्कराते और उसके हमले का जवाब देते।
फिर आश्चर्यजनक बात हुई। कृष्ण जितना मुस्कराते, राक्षस का आकार उतना ही छोटा हो जाता। धीरे- धीरे वह छोटा होकर मच्छर के बराबर हो गया। कृष्ण ने उसे पकड़ कर अपने दुपट्टे में बांध लिया। सुबह हुई तो बलराम और सात्यकि को घायल देख कर कृष्ण ने पूछा, यह सब कैसे हुआ। तुम दोनों तो बहुत शक्तिशाली हो, तुम्हें किसने घायल कर दिया? दोनों ने रात की घटना बताई। कृष्ण ने दुपट्टे को खोल कर वह मच्छर दिखाते हुए कहा, यह रहा तुम्हारा राक्षस।
सत्य यह है कि क्रोध ही राक्षस है। जितना क्रोध करोगे, राक्षस उतना ही शक्तिशाली होता जाएगा और तुम्हें नुकसान पहुंचाएगा। असल में अपने आप में राक्षस कुछ नहीं है।

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