शनिवार, 1 जनवरी 2011

भागवत १५५: जब कंस ने नवजात शिशुओं को मारने का आदेश दिया

शुकदेवजी कहते हैं-परीक्षित! जब वसुदेव और देवकी ने इस प्रकार प्रसन्न होकर निष्कपट भाव से कंस के साथ बातचीत की, तब उनसे अनुमति लेकर कंस अपने महल में चला गया। वह रात्रि बीत जाने पर कंस ने अपने मंत्रियों को बुलाया और योगमाया ने जो कुछ कहा था वह सब उन्हें सुनाया। कंस के मंत्री पूर्णतया नीतिनिपुण नहीं थे।
दैत्य होने के कारण स्वभाव से ही वे देवताओं के प्रति शत्रुता का भाव रखते थे। अपने स्वामी कंस की बात सुनकर वे देवताओं पर और भी चिढ़ गए और कंस से कहने लगे-भोजराज! यदि ऐसी बात है तो हम आज ही बड़े-बड़े नगरों में, छोटे-छोटे गांवों में, अहीरों की बस्तियों में और दूसरे स्थानों में जितने बच्चे हुए हैं वे चाहे दस दिन से अधिक के हों या कम के, सबको कोई उपाय कर जल्दी ही मार डालेंगे। इस प्रकार उन बालकों क साथ देवकी की आठवी संतान भी नष्ट हो जाएगी और आपको कोई भय भी नहीं रहेगा।कंस ने भी इसके लिए हामी भर दी।
इधर बालक के जन्म की खुशी में नंदग्राम में उत्सव मनाया जा रहा था। पूरा गोकुल आनंद मना रहा था। आसपास के गांव की सभी स्त्रियां नंदबाबा के घर बालक को आशीर्वाद देने पहुंची। साथ-साथ वे मंगलगान भी गाती जाती थीं। नंदबाबा ने भी विशाल ह्रदय से दान दिया। उस दिन से नंदबाबा के व्रज में सब प्रकार की रिद्धि-सिद्धि अठखेलियां करने लगीं और भगवान श्रीकृष्ण के निवास तथा अपने स्वभाविक गुणों के कारण वह लक्ष्मीजी का क्रीडास्थल बन गया।

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