गुरुवार, 27 जनवरी 2011

माँ की देन!

स्कूल से वापस घर लौट आए बालक ने माँ से कहा- 'माँ! अब हम और स्कूल की फीस एवं यूनीफार्म की अनदेखी नहीं कर सकते, आज मुझे स्कूल से निकाल दिया गया है।'
'बेटा उनसे कहना था, कुछ दिन की मोहलत और दे दें!'
माँ ने कहा 'वह तो कहा था माँ, लेकिन स्कूल वाले मानते ही नहीं!' बालक निराश होकर बोला।
माँ का मन उदास हो गया। फिर कुछ सोचा और दूसरे ही पल जैसे कुछ दृढ़ निर्णय ले लिया हो। बोली, 'ठीक है बेटे, अब तुम स्कूल जाना भी मत! मैं घर पर ही तुम्हें पढ़ाऊँगी।' और माँ ने उसे घर पर ही पढ़ाना शुरू कर दिया।
बालक के लिए अब घर ही विद्यालय था तथा माँ ही गुरु। माँ उसे स्वाध्यायी तौर पर परीक्षाओं में शामिल कराती रहीं और बेटा परीक्षाएँ उत्तीर्ण करता रहा।
माँ-बेटे के आत्मविश्वास, मेहनत और लगन के फलस्वरूप कक्षा दर कक्षा सर्वोच्च श्रेणियाँ प्राप्त करते हुए यही बालक आगे चलकर वैज्ञानिक बना, महान वैज्ञानिक!
जानते हैं यह वैज्ञानिक कौन था? -थॉमस अल्वा एडीसन, जिसने दुनिया को रोशनी देने के लिए बल्ब का अविष्कार किया।
एक विद्यालय जिसे ज्ञान की रोशनी नहीं दे सका, उसने विश्व को रोशन कर दिया।

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