शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

बेटियों के ससुराल में खाना क्यों नहीं खाते!

कहते हैं बेटियां बाबुल के आंगन की शोभा होती है। जिस घर में बेटियां नहीं होती उस घर का हर त्यौहार या उत्सव सूना सा लगता है। हमारे यहां बेटियों को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है। लेकिन यह भी सच है कि बेटियों को एक दिन अपने ससुराल जाना होता है क्योंकि यही परंपरा है। आपने बढ़े-बुजूर्गों को अक्सर कहते सुना होगा कि बेटियों के ससुराल में माता-पिता या अन्य मायके वालों को खाना नहीं खाना चाहिए या पानी नहीं पीना चाहिए। आज लड़कियां तेजी से हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है।
इसलिए इस मान्यता को लोगों ने अंधविश्वास मान लिया है। दरअसल ये मान्यता कोई अंधविश्वास नहीं है। हर परंपरा के पीछे हमारे पूर्वजों की कोई गहरी सोच जरूर रही है। बेटी शादी में कई रस्में होती है। जिनके बिना शादी होती ही नहीं है। उन्हीं रस्मों में से एक है कन्यादान। कन्यादान शादी का मुख्य अंग माना गया है। शास्त्रों के अनुसार दान करना पुण्य कर्म है और इससे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। दान के महत्व को ध्यान में रखते हुए इस संबंध में कई नियम बनाए गए हैं ताकि दान करने वाले को अधिक से अधिक धर्म लाभ प्राप्त हो सके। ऐसा ही एक नियम है दिए हुए दान का उपयोग नहीं करना। जिस तरह ब्राह्मण को दिया हुआ दान वापस नहीं लिया जाता या दान की हुई गाय का दूध नहीं पीया जाता है। उसी तरह शादी में संकल्प कर कन्या का दान वर को किया जाता है। इसलिए एक बार कन्या को दान करने के बाद उसके ससुराल में भोजन करना या उसके घर का पानी भी नहीं पीये जाने का रिवाज बनाया गया था।

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