शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

मंदिरों में चमड़ा वर्जित क्यों?

हम जब भी मंदिर या किसी धर्मस्थल पर जाते हैं तो अपने जूते, बैल्ट, पर्स इत्यादि बाहर ही छोड़कर जाते हैं।
ये सभी वस्तुएं अधिकतर चमड़े की बनी होती हैं। तो क्या कारण है कि मंदिरों व धर्मस्थलों में चमड़ा पहनकर नहीं जाना चाहिए?
मंदिरों व धर्मस्थलों में चमड़ा वर्जित क्यों है?
चमड़े को धार्मिक दृष्टि से अपवित्र माना जाता है। चमड़े की वस्तु पहनकर कोई भी पूजा-अनुष्ठान नहीं किया जा सकता।
चूंकि चमड़ा जानवरों की खाल से बनाया जाता है इसलिए अपवित्र माना जाता है। इसलिए धर्म की दृष्टि से चमड़ा अपवित्र है।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी चमड़े की बनी वस्तुओं को अपवित्र माना जाता है। विज्ञान भी यह सिद्ध कर चुका है कि चमड़े में पशुओं की खाल का उपयोग किया जाता है।
मरे हुए जानवरों के शरीर से चमड़ा उतारकर आज फैशन की उच्चकोटि की वस्तुएं बनायी जा रही हैं। किसी की बलि लेकर उसके शरीर की खाल का यह इस्तेमाल कैसे पवित्र माना जा सकता है?
इन वस्तुओं को दुर्गन्ध रहित बनाने के लिए केमिकल्स का प्रयोग करते हैं जो शरीर के लिए नुकसानदायक होता है। आप खुद ही इस बात को सच मानते हैं कि किसी भी वस्तु को साफ करने या अच्छा बनाने के लिए उसे पानी से धोया जाता है।
पर चमड़ा पानी में खराब होने लगता है और सडऩे लगता है जो हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक होता है। इसलिए जहां तक हो सके चमड़े के उपयोग से बचना चाहिए।
(www.bhaskar.com)

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