सोमवार, 21 मार्च 2011

तब दुर्योधन पर पांचों पांडव हंसने लगे

राजा दुर्योधन ने शकुनि के साथ इन्द्रप्रस्थ में ठहरकर धीरे-धीरे सारी सभा का निरीक्षण किया। उसने ऐसा कला कौशल कभी नहीं देखा था। सभा में घूमते समय दुर्योधन स्फ टिक चौक में पहुंच गया। उसे जल समझकर उसने अपने कपड़ो को ऊंचा उठा लिया। बाद में जब उसे यह समझ आया कि यह तो स्फटिक फर्श है तो उसे दुख हुआ।
वह इधर-उधर भटकने लगा। उसके बाद वह थोड़ा आगे बड़ा और स्फटिक की बावड़ी में जा गिरा। उसकी ऐसी हालत देखकर भीमसेन, अर्जुन, नकुल, सहदेव, सब के सब हंसने लगे। उनकी हंसी से दुर्योधन को बहुत दुख हुआ। इसके बाद जब वह दरवाजे के आकार की स्फटिक की बने दरवाजे को बंद दरवाजा समझकर उसके अंदर प्र्रवेश करने की कोशिश करने लगा। तब उसे ऐसी टक्कर लगी कि उसे चक्कर आ गया।
एक स्थान पर बड़े-बड़े दरवाजे को धक्का देकर खोलने लगा तो दूसरी ओर गिर पड़ा। एक बार सही दरवाजे पर भी पहुंचा तो धोखा समझकर वहां से वापस लौट गया। इस तरह राजसूय यज्ञ और पाण्डवों की सभा देखकर दुर्योधन के मन में बहुत जलन हुई। उसका मन कड़वाहट से भर गया। उसके बाद वह युधिष्ठिर से आज्ञा लेकर वह हस्तिनापुर लौट गया।

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