सोमवार, 21 मार्च 2011

महाभारत की भविष्यवाणी?

जब राजसूय यज्ञ समाप्त हो गया तब भगवान श्रीकृष्ण-द्वैपायन अपने शिष्यों के साथ धर्मराज युधिष्ठिर के पास आए। युधिष्ठर ने भाइयों के साथ उठकर उनका पूजन किया। उसके बाद वे अपने सिंहासन पर बैठ गए और सबको बैठने की आज्ञा दी। तब भगवान व्यास जी ने कहा की आपके सम्राट होने से कुरुवंश की कीर्ति बहुत उन्नति हुई। धर्मराज ने हाथ जोड़कर पितामह व्यास का चरणस्पर्श किया और कहा मुझे एक बात पर संशय है।
आप ही मेरे संशय को दूर कर सकते है।नारद ने कहा था कि भुकंप आदि उत्पात हो रहे हैं। आप कृपा करके यह बताइए की शिशुपाल की मृत्यु से उनकी समाप्ति हो गई या वे अभी बाकि है। युधिष्ठिर का प्रश्न सुनकर भगवान व्यास जी ने कहा इन उत्पातों का फल तेरह साल बाद नजर आएगा। वह होगा क्षत्रियों का संहार। उस समय दुर्योधन के अपराध से आप निमित बनोगे और इकठ्ठे होकर भीमसेन और अर्जुन के बल से मर मिटेंगें।
उसके बादभगवान कृष्ण द्वैपायन अपने शिष्यों को लेकर कैलास चले गए। युधिष्ठिर को बहुत चिन्ता हो गई। भगवान व्यास की बात याद करके उनकी सांसे गरम हो गई।
वे अपने भाइयों से बोले - भाइयों तुम्हारा कल्याण हो आज से मेरी जो प्रतिज्ञा है उसे सुनो अब मैं तेरह वर्ष तक जीकर ही क्या करूंगा? यदि जीना ही है तो आज से मेरी प्रतिज्ञा सुनों आज से मैं किसी के प्रति कड़वी बात नहीं कहूंगा। यदि जीना ही है तो आज से मैं अपने भाई-बन्धुओं के कहे अनुसार ही कार्य करूंगा। अपने पुत्र और दुश्मन के पुत्र प्रति एक जैसा बर्ताव करने से मुझमें और उसमें कोई भेद नहीं रहेगा। यह भेदभाव ही तो लड़ाई की जड़ है ना। युधिष्ठिर भाइयों के साथ ऐसा नियम बनाकर उसका पालन करने लगे। वे नियम से पितरों का तर्पण और देवताओं की पूजा करने लगे।
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