बुधवार, 23 मार्च 2011

इन गुणों से मिलती है प्रशंसा और प्रतिष्ठा

ज्ञान और गुण के सागर हनुमानजी आपकी जय हो। तीन लोक (स्वर्ग, भू और पाताल) आपसे प्रकाशमान हैं। अत: आप कपीस यानी वानरों के राजा हैं। इनका पहला नाम हनुमान लिखा है। जब इन्होंने सूर्य को मुंह में रख लिया था तब इन्द्र ने वज्र का प्रहार कर सूर्य को मुक्त कराया था, प्रहार से इनकी ठोढ़ी टूट गई थी। संस्कृत में ठोढ़ी को हनु कहा है, अत: इनका एक नाम हनुमान पड़ा।
लेकिन हनुमान का एक महत्वपूर्ण अर्थ है जो अपने मान का हनन कर दे वो हनुमान है। हनुमान के भक्त को निराभिमानी होना चाहिए। परमात्मा अहंकार शून्य चित्त में ही उतरते हैं। इन्हें ज्ञान, गुण का सागर कहा है मंदिर नहीं। एक फर्क है मंदिर में पवित्र होकर जाया जाता है। योग्यता मनुष्य की पहचान कैसे बन जाती है देखें, कपीस लिखा है हनुमानजी को। लेकिन वानरों के राजा सुग्रीव थे, हनुमानजी तो उनके मंत्री थे। परन्तु तुलसीदासजी का मानना है जो लोगों के दिल पर राज करे वो असली राजा है।
इसलिए उन्होंने हनुमानजी को राजा संबोधित किया। हनुमानजी पद से नहीं, पद हनुमानजी के नाम से जाना जा रहा है। योग्यता से प्रतिष्ठा को किस प्रकार जोड़ा जा सकता है यह इस चौपाई से पता चलता है, तिहुंलोक उजागर का अर्थ है अपने सद्कर्मों से प्रतिष्ठा अर्जित की जाए तथा उसे सीमित न रखें, उसका विस्तार हो ताकि अधिक से अधिक लोग उससे प्रेरित हो सकें। हनुमान केवल पूजनीय नहीं प्रेरक भी हैं।
www.bhaskar.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें