शनिवार, 26 मार्च 2011

क्यों चले गए युधिष्ठिर जुआ खेलने?

राजा धृतराष्ट्र ने अपने मुख्य मंत्री विदुर को बुलवाकर कहा कि विदुर तुम मेरी आज्ञा से जाओ और युधिष्ठिर को बुलाकर ले आओ। युधिष्टिर से कहना हमने एक रत्न से जड़ी सभा बनवाई है। उन्हें कहना वे उसे अपने भाइयों के साथ आकर देखें और सब इष्ट मित्रों के साथ द्यूत क्रीड़ा करें।विदुर को यह बात न्याय के प्रतिकू ल लगी। इसलिए विदुर ने उनसे कहा कि मैं आपकी इस आज्ञा को स्वीकार नहीं कर सकता हूं।
तब धृतराष्ट्र ने कहा अगर तुम मेरी बात नहीं मानते हो तो दुर्योधन के वैर विरोध से भी मुझे कोई दुख नहीं है। धृतराष्ट्र की ऐसी बात सुनकर विदुर मजबूर हो गए। वे शीघ्रगामी रथ से इन्द्रप्रस्थ के लिए निकल पड़े। वहां जाकर उन्होंने युधिष्ठिर ने उनका यथोचित सत्कार किया। वहां पहुंचकर उन्होंने कौरवों का संदेश युधिष्ठिर को सुनाया। उनका संदेश सुनकर युधिष्ठिर ने कहा चाचाजी द्यूत खेलना तो मुझे सही नहीं लगता? तब विदुर ने कहा कि मैं यह जानता हूं कि जुआ खेलना सारे अनर्थो की जड़ है। ऐसा कौन भला आदमी होगा जो जुआ खेलना पसंद करेगा।
मैंने इसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन मुझे सफलता नहीं मिली। आप को जो अच्छा लगे आप वही करें। युधिष्ठिर ने कहा वहा दुर्योधन, दु:शासन आदि के सिवा और भी खिलाड़ी इकठ्ठे होंगे। हमें उनके साथ जुआ खेलने के लिए बुलाया जा रहा है। तब विदुर ने कहा आप तो जानते ही हैं कि शकुनि पास फेंकने के लिए प्रसिद्ध है। युधिष्ठिर ने कहा तब तो आपका कहना ही सही है। अगर मुझे धृतराष्ट्र शकुनि के साथ जुआ खेलने नहीं बुलाते तो मैं कभी नहीं जाता। युधिष्ठिर ने इतना कहकर कहा कि कल सुबह द्रोपदी और अन्य रानियों के साथ हम पांचों भाई हस्तिनापुर चलेंगे।

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