उस नगर का ऐश्वर्य अद्भुत था। वहां विश्वमोहिनी नाम की एक कन्या थी। जिसके रूप को देखकर लक्ष्मीजी भी मोहित हो जाए। वह राजकुमारी स्वंयवर करना चाहती थी। इसलिए वहां अगणित राजा आए हुए थे। तभी नारदजी भ्रमण करते हुए उस नगर में पहुंचे। वहां के राजा से बात की। राजा ने राजकुमारी को लाकर नारद को दिखाया और पूछा कि नारद मुनि आप इस कन्या के गुण व दोष बताएं।
उसके रूप को देखकर नारद मुनि अपना वैराग्य भूल गए। बड़ी देर तक उसकी तरफ देखते रहे। उसके लक्षण देखकर उन्हें बहुत खुशी हुई। वे मन ही मन खुद से कहने लगे कि जो इसे ब्याहेगा वह अमर हो जाएगा। रणभूमि में उसे कोई जीत न सकेगा। यह कन्या जिससे भी शादी करेगी सब चर-अचर जीव उसकी सेवा करेंगे। राजा से यह कहकर कि आपकी लड़की सुलक्षणा है नारदजी वहां से चल दिए। लेकिन उनके मन की चिंता यह थी कि मैं जाकर सोच-समझकर कुछ ऐसा करूं जिससे ये कन्या मुझसे ही शादी करे। इस समय तो सबसे पहले मुझे सुन्दर रूप की आवश्यकता है। तब नारदजी ने सोचा कि क्यों ना मैं भगवान से विनती करके सुन्दरता मांगू क्योंकि इस समय सिर्फ वही मेरी मदद कर सकते हैं।
उसके रूप को देखकर नारद मुनि अपना वैराग्य भूल गए। बड़ी देर तक उसकी तरफ देखते रहे। उसके लक्षण देखकर उन्हें बहुत खुशी हुई। वे मन ही मन खुद से कहने लगे कि जो इसे ब्याहेगा वह अमर हो जाएगा। रणभूमि में उसे कोई जीत न सकेगा। यह कन्या जिससे भी शादी करेगी सब चर-अचर जीव उसकी सेवा करेंगे। राजा से यह कहकर कि आपकी लड़की सुलक्षणा है नारदजी वहां से चल दिए। लेकिन उनके मन की चिंता यह थी कि मैं जाकर सोच-समझकर कुछ ऐसा करूं जिससे ये कन्या मुझसे ही शादी करे। इस समय तो सबसे पहले मुझे सुन्दर रूप की आवश्यकता है। तब नारदजी ने सोचा कि क्यों ना मैं भगवान से विनती करके सुन्दरता मांगू क्योंकि इस समय सिर्फ वही मेरी मदद कर सकते हैं।
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