शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

सबसे पहले द्रोपदी को लेने के लिए दुर्योधन ने किसे भेजा?

दुर्योधन ने विदुर जी को कहा तुम यहां आओ। तुम जाकर पाण्डवों की पत्नी द्रोपदी को जल्दी ले आओ। वह अभागिन यहां आकर हमारे महल की झाड़ू निकाले। हमारे महल की दासियों के साथ रहे। तब विदुर जी ने कहा दुर्योधन तुझे पता नहीं है कि तू फांसी पर लटक रहा है और मरने वाला है। तभी तो तेरे मुंह से ऐसी बात निकल रही है। अरे तुने शेर के मुंह में हाथ डाला है। तेरे सिर पर सांप फैलाकर फुफकार रहे है। तू उनसे छेडख़ानी करके यमपुरी मत जा।
द्रोपदी कभी तुम्हारी दासी नहीं हो सकती है। दुर्योधन ने प्रतिकामी से कहा युधिष्ठिर ने द्रोपदी को दावं पर लगाया है तुम इसी समय जाकर द्रोपदी को ले आओ। पाण्डवों से डरने की कोई बात नहीं है। प्रतिकामी दुर्योधन की आज्ञा के अनुसार द्रोपदी के पास गया। द्रोपदी से कहा महाराज युधिष्ठिर जूए में सब धन के साथ आपको भी हार गए हैं। जब दावं पर लगाने के लिए कुछ नहीं रहा तो उन्होंने आपको ही दावं पर लगा दिया। आप भी दुर्योधन की जीती हुई वस्तुओं में से है इसलिए आप मेरे साथ सभा में चलिए। तब द्रोपदी बोली जगत में धर्म सबसे बड़ी वस्तु है। मैं धर्म का उल्लंघन नहीं करना चाहती। तुम सभा में जाकर धर्मावलंबियों से पूछो की मुझे क्या करना चाहिए?

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