शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

तब कुंभकरण ने वरदान में मांगी छ:महीने की नींद


राजा प्रतापभानु का ब्राह्मणों के शाप के कारण राक्षस रूप में जन्म लेना अब आगे...राजा प्रतापभानु ने ही रावण नामक राक्षस के रूप में जन्म लिया। उसके दस सिर और बीस भुजाएं थीं। वह बहुत शुरवीर था। अरिमर्दन नाम का उस राजा का छोटा भाई था जिसने कुंभकर्ण के रूप में जन्म लिया। उसका जो मंत्री धर्मरुचि था वह रावण का सौतेला भाई हुआ। उसका नाम विभीषण था। वह विष्णु भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। जो राजा के पुत्र और सेवक थे उन सभी ने राक्षस के रूप में जन्म लिया।
वे सभी बहुत ही भयानक और सभी को दुख पहुंचाने वाले साबित हुए। वे पुलत्सय ऋषि के कुल में उत्पन्न हुए। तीनों भाइयों ने अनेक प्रकार की बड़ी ही कठिन तपस्या की, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। तप देखकर ब्रह्मजी उनके सामने प्रकट हुए और बोले मैं प्रसन्न हूं वर मांगो। रावण ने उनसे वर मांगा कि वानर और मनुष्य इन दो जातियों को छोड़कर हम और किसी के मारे ना मरे।
शिवजी कहते हैं कि मैंने और ब्रह्म ने मिलकर उसे वर दिया कि ऐसा ही हो, तुमने बड़ा तप किया है। फिर ब्रह्मजी कुंभकर्ण के पास गए । उसे देखकर उन्हें मन ही मन बड़ा आश्चर्य हुआ। जो यह दुष्ट रोज भोजन करेगा तो सारा संसार ही उजाड़ हो जाएगा। सरस्वती ने ब्रह्मा की प्रेरणा से उसकी बुद्धि फेर दी उसने छ: महीने की नींद मांगी फिर ब्रह्मजी विभीषण के पास गए और बोले वर मांगो। उसने भगवान के चरण में निर्मल प्रेम मांगा। उनको वर देकर ब्रह्मजी वहां से चले गए।

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