मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

भागवत २३२: ...और कृष्ण पर लगा हत्यारे होने का कलंक

वहां द्वारिका में कृष्णजी के यदुवंश में एक बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति थे सत्राजीत। सत्राजीत सूर्य देवता के उपासक थे। सूर्य देवता ने प्रसन्न होकर सत्राजीत को एक मणि दी। मणि का नाम था स्यमन्तक मणि। कथा इस प्रकार है। सत्राजीत भगवान् सूर्य का बहुत बड़ा भक्त था। वे उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसके बहुत बड़े मित्र बन गए थे। सूर्य भगवान् ने ही प्रसन्न होकर बड़े प्रेम से उसे स्यमन्तक मणि दी थी।

सत्राजीत उस मणि को गले में धारणकर ऐसा चमकने लगा, मानो स्वयं सूर्य ही हो।जब सत्राजीत द्वारिका में आया, तब अत्यंत तेजस्विता के कारण लोग उसे पहचान न सके। दूर से ही उसे देखकर लोगों की आंखें उसके तेज से चौंधिया गईं। लोगों ने समझा कि कदाचित् स्वयं भगवान् सूर्य आ रहे हैं। उन लोगों ने भगवान् के पास आकर उन्हें इस बात की सूचना दी। उस समय भगवान् श्रीकृष्ण चौसर खेल रहे थे।
यह बात सुनकर श्रीकृष्ण हंसने लगे। उन्होंने कहा - अरे, ये सूर्यदेव नहीं हैं। यह तो सत्राजीत है, जो मणि के कारण इतना चमक रहा है। इसके बाद सत्राजीत अपने समृद्ध घर में चला गया। घर पर उसके शुभागमन के उपलक्ष्य में मंगल उत्सव मनाया जा रहा था। उसने ब्राह्मणों के द्वारा स्यमन्तक मणि को एक देव मंदिर में स्थापित करा दिया। भगवान के लिए लोक हित, राष्ट्रहित सर्वोपरि है।
वे व्यक्तिगत उपलब्धियों को महत्व नहीं देते, वे लोक नायक हैं जब तक किसी उपलब्धि से राष्ट्र का हित न हो, वे उसे उपलब्धि नहीं मानते। सत्राजीत ने सूर्य से मणि प्राप्त की लेकिन इसे व्यक्तिगत उन्नति और सम्पन्नता में लगा दिया।वह मणि प्रतिदिन आठ भार सोना दिया करती थी और जहां वह पूजित होकर रहती थी। उसने भगवान की आज्ञा को अस्वीकार कर दिया।एक दिन सत्राजीत के भाई प्रसेन ने उस परम प्रकाशमयी मणि को अपने गले में धारण कर लिया और फिर वह घोड़े पर सवार होकर शिकार खेलने वन में चला गया। वहां एक सिंह ने घोड़े सहित प्रसेन को मार डाला और उस मणि को छीन लिया। वह अभी पर्वत की गुफा में प्रवेष कर ही रहा था कि मणि के लिए ऋक्षराज जाम्बवान् ने उसे मार डाला। उन्होंने वह मणि अपनी गुफा में ले जाकर बच्चे को खेलने के लिए दे दी। अपने भाई प्रसेन के न लौटने से सत्राजीत को बड़ा दुख हुआ।इधर सत्राजीत ने देखा कि मणि भी नहीं है और मेरा भाई भी नहीं है तो सत्राजीत लोगों से कहता है कि मुझे यह संदेह होता है कि श्रीकृष्ण ने मेरे भाई को मार डाला और मणि ले ली क्योंकि श्रीकृष्ण कह रहे थे कि मणि हमें दे दो और मैंने मना कर दिया। बात खुसुर-फुसर फैल गई और सारी द्वारिका में यह चर्चा होने लगी कि कृष्ण ने मणि ले ली और कृष्ण हत्यारे हैं। कृष्ण पर कलंक लगना आरम्भ हुआ।

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