गुरुवार, 26 मई 2011

राजा नल ने क्यों किया दमयंती को छोडऩे का फैसला?

महाभारत में अब तक आपने पढ़ा...राजा नल दुख और शोक से भरकर बड़ी ही सावधानी के साथ दमयन्ती को भिन्न-भिन्न आश्रम मार्ग बताने लगे। दमयन्ती की आंखें आंसु से भर गई। दमयन्ती ने राजा नल से कहा क्या आपको लगता है कि मैं आपको छोड़कर अकेली कहीं जा सकती हूं। मैं आपके साथ रहकर आपके दुख को दूर करूंगी। दुख के अवसरो पर पत्नी पुरुष के लिए औषधी के समान है।
वह धैर्य देकर पति के दुख को कम करती है उस समय नल के शरीर पर वस्त्र नहीं था। धरती पर बिछाने के लिए एक चटाई भी नहीं थी। शरीर पर धूल से लथपथ हो रहा था। भूख-प्यास से परेशान राजा नल जमीन पर ही सो गए। दमयन्ती भी उनके साथ ये सारे दुख झेल रही थी। राजा नल भी जमीन पर ही सो गए। दमयन्ती के सो जाने पर राजा नल की नींद टूटी। सच्ची बात तो यह थी कि वे दुख और शोक की के कारण सुख की नींद सो भी नहीं सकते थे। वे सोचने लगे कि दमयंती मुझ से बड़ा प्रेम करती है। प्रेम के कारण ही उसे इतना दुख झेलना पड़ेगा। यदि मैं इसे छोड़कर चला जाऊं तो संभव है कि इसे सुख भी मिल जाए। अन्त में राजा नल ने यही निश्चय कि इसे सुख भी मिल जाए।
दमयन्ती सच्ची पतिव्रता है। इसके सतीत्व को कोई भंग नहीं कर सकता। इस प्रकार त्यागने का निश्चय करके और सतीत्व की ओर से निश्चिन्त होकर राजा नल ने यह विचार किया कि मैं नंगा हूं और दमयन्ती के शरीर पर भी केवल एक वस्त्र है। फिर भी इसके वस्त्रों में से आधा फाड़ लेना ही श्रेयस्कर है लेकिन फांडू़ कैसे? शायद यह जाग जाए? राजा नल ने यह सोचकर दमयंती को धीरे से उठाकर उसके शरीर का आधा वस्त्र फाड़कर शरीर ढक लिया। दमयंती नींद में थी। राजा नल उसे छोड़कर निकल पड़े। थोड़ी देर बाद वे शांत हुए और वे फिर धर्मशाला लौट आए।

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