गुरुवार, 26 मई 2011

सीताजी जब वरमाला लेकर रामजी के समीप पहुंची तो....

रामायण में अब तक आपने पढ़ा...तभी रामजी अपने स्थान पर से उठे और उन्होंने सीताजी की ओर ऐसे ताका है, जैसे गरूड़ की तरफ सांप ताकता है। रामजी ने मन ही मन गुरु को प्रणाम किया और बड़ी फुर्ती से धनुष को उठा लिया तो धनुष बिजली की तरह चमका और फिर आकाश मंडलाकार सा हो गया अब आगे...
जैसे ही रामजी ने धनुष तोड़ा सारे ब्रह्माण्ड में जयजयकार की ध्वनि छा गई। सभी लोग आपस में प्रसन्न होकर कह रहे हैं श्रीरामजी ने धनुष तोड़ दिया। सब लोग घोड़े, हाथी, धन मणि, वस्त्र न्यौछावर कर रहे हैं। बहुत तरह के बाजे-बज रहे हैं। युवतियां मंगलगीत गा रही है। सभी सहेलियों और सीताजी बहुत खुश हुई। धनुष के टूट जाने पर राजा लोग निस्तेज हो गए।
रामजी को लक्ष्मणजी इस प्रकार देख रहे हैं जैसे चंद्रमा को चकोर का बच्चा देख रहा है। शतानन्दजी ने आज्ञा दी और सीताजी रामजी के पास गई। उनके साथ में चार सहेलियां मंगल गीत गाती हुई चल रही है। सहेलियों के बीच में सीताजी चल रही है। सीताजी का शरीर संकोच में है, पर मन में बहुत उत्साह है। रामजी के पास जाकर सीताजी पलके झपकाना भूल गई।
तभी एक चतुर सहेली ने सीताजी की दशा देखकर समझाकर कहा सुहावनी जयमाला पहनाओ। यह सुनकर सीताजी ने दोनों हाथों से जयमाला उठाई लेकिन प्रेम और झिझक के कारण उन्हें पहना नहीं पा रही हैं। सीताजी ने जयमाला रामजी के गले में पहना दी। नगर और आकाश में बाजे बजने लगे। दुष्ट लोग उदास हो गए। देवता, किन्नर, मनुष्य, नाग आदि। जयजयकार करके आर्शीवाद दे रहे हैं। पृथ्वी पाताल व तीनों लोकों में यह बात फैल गई कि रामजी ने धनुष तोड़ दिया और सीताजी का वरण कर लिया है।

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