मंगलवार, 24 मई 2011

लड़की ने अपना यौवन और सौन्दर्य एक घड़े में भर दिया!!

यदि किसी इंसान का अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण न हो तो वह पागलपन की हदें भी पार कर देता है। क्योंकि विवेक या मेच्योरिटी से ही इंसान को सही-गलत या उचित-अनुचित का फर्क समझकर कार्य करने की समझ आती है। लेकिन यदि कोई इंसान अपने विवेक को ताक पर रख दे और पूरी तरह से अपने मन और इच्छाओं के अनुसार ही चलने लगे तो उसका हस्र उस राजकुमार जैसा ही हो जाता है जो एक सुन्दर युवती पर इस कदर आसक्त हो गया कि सही-गलत का फर्क ही भुला बैठा। आइये चलते हैं ऐसे ही एक रोचक प्रसंग की ओर जो सभी के लिये एक कीमती सबक बन सकता है...
पुरानी घटना है। जब दुनिया में राजशाही का प्रचलन था। एक राजकुमार अपने राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के भ्रमण कर रहा था। एक गांव में एक बेहद सुन्दर युवती को देखकर उसका मन उसपर आसक्त हो गया। वह उस युवती को जबरन अपने साथ ले जाना चाहता था। युवती ने प्रार्थना की कि वह उसके अपाहिज मां-बाप की इकलोती संतान है उन्हें छोड़कर नहीं आ सकती। लेकिन वह भोग-विलासी राजकुमार किसी भी कीमत पर मानने के लिये तैयार ही नहीं था। युवती को जब कोई रास्ता न दिखा तो उसने एक तरकीब निकाली। युवती ने उस राजकुमार से प्रार्थना की कि उसे एक महीने का समय चाहिये ताकि वह अपने अपाहिज माता-पिता की उचित व्यवस्था कर सके। राजकुमार ने जैसे-तैसे अपने मन को समझाकर युवती की इस शर्त को मान लिया। राजकुमार गिन-गिन कर एक-एक दिन गुजारने लगा। वह रात-दिन बस उस सुन्दर लड़की के ही ख्वाब देखता रहता।
उधर उस लड़की ने अपनी तरकीब पर काम करना शुरु कर दिया। लड़की एक अनुभवी वैद्य यानी चिकित्सक के पास जाकर जुलाब यानी दस्त लगने की औषधि लेकर आ गई। लड़की ने नहाना-धोना छोड़ दिया और प्रतिदिन उस जुलाव की दवाई को खाने लगी। उस जुलाव की औषधि से उसे कई बार दस्त लगते। वह उस सारे मल मूत्र को एक घड़े में भर कर रखने लगी। वह पूरे एक महीने तक एक कमरे में ही बंद रही, ना ही स्नान किया और ना ही बाल संवारे। रोज-रोज जुलाव की औषधि लेने से उसका सारा शरीर सूखकर मात्र हड्डियों का ढ़ाचा ही रह गया। महीने भर पहले जो युवती अपने सौन्दर्य के लिये दूर-दूर तक प्रसिद्ध थी, आज वो बूढ़ी, बदसूरत, घ्रणित और दुर्गंध से भरी हुई लग रही थी। उसने पूरे महीने सारा मल-मूत्र एकत्रित करके एक घड़े में भर लिया था।
महीना पूरा होते ही सौन्दर्य का दीवाना वह राजकुमार बड़े उत्साह से उस युवती को ले जाने के लिये उसके घर जा पहुंचा। जैसे ही वह उस लड़की के कमरे में गया, उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उस लड़की को देखकर उसे भरोसा ही नहीं
हुआ कि यह वही लड़की है जिसे उसने महीने भर पहले देखा था। शरीर पर मेल की पर्ते, हड्डियों का ढांचा, उठती हुई दुर्गंध... यह सब देखकर राजकुमार का सिर फटने लगा। जाने से पहले उसने इतना ही पूछा कि यह अचानक तुम्हें क्या रोग लग गया? तुम्हारा वो दिव्य सौन्दर्य कहां गया? लड़की ने कहा कि मुझे कोई बीमारी नहीं लगी है और हां जिस यौवन और सौन्दर्य को पाने के लिये तुम इतने बैचेन और पागल हो रहे थे, वह उसे घड़े में भरा है, चाहो तो उसे अपने साथ ले जा सकते हो। राजकुमार ने जैसे ही उस घडे का ढक्कन हटाया तेज दुर्गंध से उसका सिर भन्नाने लगा। उसे लगा कि यदि कुछ और क्षण वो यहां रुका तो बेहोंस हो जाएगा। वह बड़ी तेजी से वहां से भाग निकला।
www.bhaskar.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें