बुधवार, 25 मई 2011

मरने से पहले पिता ने बेटे को दी अद्भुत शिक्षा

कहते हैं कि कोई कितना भी बुरा व्यक्ति हो लेकिन मरते वक्त यानी जब वह मृत्युशय्या पर पड़ा हो तो वह कभी भी झू्ठ नहीं बोलता। मरते समय इंसान सारी बुराइयों को छोड़कर पूरी तरह से निष्पाप बन जाता है। यहां हम बात कर रहे हैं हकीम लुकमान के अंतिम समय की जो कि दुनियाभर में प्रसिद्ध एक महान चिकित्सक और संत व्यक्ति थे।
हकीम लुकमान के जीवन से जुड़ी एक घटना है। जब वे मृत्युशैय्या पर अंतिम सांस ले रहे थे तो उन्होंने अपने पुत्र को पास बुलाकर कहा-बेटा। मैं जाते-जाते एक अंतिम और अति महत्वपूर्ण शिक्षा देना चाहता हूं। इतना कहकर लुकमान ने पुत्र से धूपदान लाने के लिए कहा। जब वह धूपदान लेकर आया, तो लुकमान ने उसमें से चुटकी भर चंदन लेकर उसके हाथ में थमाया और संकेत से उसे कोयला लाने के लिए कहा। जब पुत्र कोयला लेकर आया तो उन्होंने दूसरे हाथ में कोयले को रखने का आदेश दिया। कुछ देर बाद फिर लुकमान ने कहा-अब इन्हें अपने-अपने स्थान पर वापस रख आओ। पुत्र ने वैसा ही किया। उसकी जिस हथेली में चंदन था, वह उसकी सुंगध से अब भी महक रही थी और जिस हाथ में कोयला था वह हाथ काला दिखाई पड़ रहा था। लुकमान ने पुत्र को समझाया-बेटे। अच्छे व्यक्तियों का साथ चंदन जैसा होता है। जब तक उनका साथ रहेगा, तब तक तो सुगंध मिलगी ही, किंतु साथ छूटने के बाद भी उनके सद्विचारों की सुवास से जिदंगी तरोताजा बनी रहेगी जबकि दुर्जनों का साथ कोयले जैसा है। कुसंगति से प्राप्त कुसंस्कारों का प्रभाव आजीवन बना रहता है। इसलिए बेटा। जीवन में सदैव चंदन जैसे संस्कारी व्यक्तियों के ही साथ रहना और कोयले जैसे कुसंग से दूर रहना।शायद इसीलिए कहा गया है-चंदन की चुटकी भली, गाड़ी भरान काठ अर्थात चंदन की चुटकी भी मन को उल्लास से भर देती है जबकि गाड़ी भर लकड़ी भी इस कार्य को संपन्न नहीं कर सकती।
लुकमान का पुत्र उनके दिखाए मार्ग पर चलकर सदैव सुखी रहा। वस्तुत: लुकमान का यह उपदेश सत्संग की महिमा प्रस्थापित करता है। अच्छे व्यक्तियों का साथ शुभ फलदायी होता है जबकि बुरे व्यक्तियों का संगति अशुभ परिणामदायी।

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