मंगलवार, 24 मई 2011

दूल्हा-दुल्हन की मांग में सिंदूर क्यों भरता है?

हमारे देश में विवाह संस्कार से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं। हिन्दू विवाह पद्धति में कुछ परंपराएं ऐसी हैं जिनका निर्वाह शादी में नहीं किया जाए तो शादी पूरी नहीं मानी जाती है जैसे मंगलसुत्र पहनाना, मांग में सिंदूर भरना, बिछिया पहनाना आदि।
इन रस्मों का निर्वाह शादी में तो किया ही जाता है साथ ही इन सभी चीजों को सुहागन के सुहाग का प्रतीक माना जाता है।इसीलिए हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार इन्हें सुहागनों का अनिवार्य श्रृंगार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन श्रृंगारों के बिना सुहागन स्त्री को नहीं रहना चाहिए।

किसी भी सुहागन स्त्री के लिए मांग में सिंदूर भरना अनिवार्य माना गया है। हिन्दू शादी में बहुत से रिवाज निभाए जाते है।
शादी में निभाई जाने वाली सभी रस्मों में फेरों की रस्म सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। फेरों के समय वधू की माँग सिंदूर से भरने का प्रावधान है। शादी में मांग सिंदूर व चांदी के सिक्के से भरी जाती है। मांग भर विवाह के पश्चात् ही सौभाग्य सूचक के रूप में माँग में सिंदूर भरा जाता है। यह सिंदूर माथे से लगाना आरंभ करके और जितनी लंबी मांग हो उतना भरा जाने का प्रावधान है।
यह सिंदूर केवल सौभाग्य का ही सूचक नहीं है इसके पीछे जो वैज्ञानिक धारणा है कि वह यह है कि माथे और मस्तिष्क के चक्रों को सक्रिय बनाए रखा जाए जिससे कि ना केवल मानसिक शांति बनी रहे बल्कि सामंजस्य की भावना भी बराबर बलवती बनी रहे अत: शादी में मांग भरने की रस्म इसीलिए निभाए जाती है ताकि वैवाहिक जीवन में हमेशा प्रेम व सामंजस्य बना रहे।
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