शनिवार, 28 मई 2011

जिगरी दोस्त नशे में अंधे ही नहीं मूर्ख भी बन गए!!

यह शिकायत कइयों की रहती है कि जी-तोड़ मेहनत करने और हर कोशिश आजमाने के बाद भी हमें सफलता क्यों नहीं मिल पाती? ऐसा कई बार होता है कि सारी की सारी मेहनत बेकार चली जाती है। समस्या की असलियत को जानने के लिय जब हम गहराई में जाकर बारीकी से खोजबीन करते हैं तब पता चलता है कि मेहनत बेकार इसलिये हुई क्योंकि वह गलत दिशा में बगैर सोचे-समझे की गई थी। इस बात को आसानी से समझने के लिये आइये चलते हैं एक रोचक घटना की ओर...
दो जिगरी दोस्त चांदनी रात का मजा लूटने के लिये नदी किनारे जा पहुंचे। जमकर शराब की चुस्कियां ली और जब नशे में धुत हो गए तो खूब नाच-गाना हुआ। कभी किशोर कुमार बन जाते तो कभी माइकल जेक्शन, शराब की मदहोंशी ने शर्म-संकोच की सारी हदें मिटा दी थीं। नाच गाने से जब मन भर गया तो उनके मन में नदी की सैर करने का सुन्दर खयाल आया। दोनों परम मित्र एक-दूसरे के गले में हाथ डालकर लडख़ड़ाते हुए पैरों से नदी के किनारे बंधी नाव की ओर चल दिये। नशे की मदहोंसी में थे, पूरे शुरूर में थे उतावली में सीधे कूद कर नाव में सवार हो गए। जल्दबाजी में इतना भी होंश नहीं रहा कि नाव जिस रस्सी से किनारे से बंधी है उसे खोला ही नहीं है। दोनों ने जल्दी-जल्दी नाव में रखे चप्पू उठाए और लगे चप्पुओं को चलाने। नशे की मदहोंशी को चांदनी रात की खूबसूरती ने और भी बढ़ा दिया था। सोचने-समझने की दिमागी क्षमता को नशे के थपेड़ों में कभी का बहा चुके थे। नाव आगे बढ़ भी रही है या नहीं इस बात को दोनों में से किसी को ध्यान ही नहीं रहा। बस लगे हैं चप्पुओं को चलाने में।
दोनों ने जमकर शराब गटकी थी इसलिये जल्दी होंश लोटने के का सवाल ही नहीं था। चप्पू चलाते-चलाते सारी रात गुजर गई। सवेरा होने को था, एक मित्र जो थोड़ा अधिक समझदार था बोला-लगता है हम किनारे से कुछ ज्यादा ही दूर निकल आए हैं अब लौट चलना चाहिये। सवेरा होने लगा था उजाले में नदी का खूबसूरत किनारा साफ नजर आ रहा था। जब पीछे मुड़ कर दोनों ने देखा तो दिमाग में कुछ ठनका, सारी बात समझ में आने लगी। पता चल गया कि सारी रात नाव तो किनारे से ही बंधी रही है, जल्दी में रस्सी को खोलना भूल गए थे। रात भर चप्पू चलाने की बेवकूफी भरी मेहनत के बारे में सोच कर मन ही मन शर्मिंदगी भी हुई और हंसी भी खूब आई। दोनों की मिलीभगत से हुई इस मूर्खतापूर्ण घटना को किसी से न कहने का पक्का वादा करके एक दूसरे को विदा देकर अगली बार किसी अच्छी जगह पर पार्टी करने की सलाह करके अपने घरों को चल गए।
इस कहानी को पढ़कर उन शराबी मित्रों को कोई भी आसानी से मूर्ख कह देगा लेकिन ऐसा जाने-अनजाने हम सभी के साथ होता रहता है। हम मेहनत तो खूब करते हैं लेकिन कामवासना, गुस्सा, आलस्य, लालच.. जैसी जाने कितनी ही रस्सियां हमारे पैरों से बंधी रहती हैं और मौत को सामने देखकर हमें समझ में आता है कि सारी दोड़-धूप बैकार ही चली गई आखिर हम पहुंचे तो कहीं भी नहीं। नशे भी कई तरह के होते हैं, कुछ नजर आते हैं लेकिन अधिक घातक नशों को तो इंसान कभी देख भी नहीं पाता।
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