शनिवार, 25 जून 2011

क्या लहसून-प्याज खाना धर्म के विरूद्ध है?

अक्सर कई संप्रदायों में देखा जाता है कि कई लोग लहसून-प्याज को भोजन में इस्तेमाल नहीं करते। जैन समाज, वैष्णव संप्रदाय इन दोनों तरह के समाजों में यह अधिकतर पाया जाता है।लहसून और प्याज से परहेज किया जाता है। क्यों इसे खाने में उपयोग करने से बचा जाता है? क्यों इन्हें सन्यासियों के भोजन में भी जगह नहीं मिलती?वास्तव में लहसून और प्याज कोई शापित या धर्म के विरुद्ध नहीं है। इनकी तासीर या गुणों के कारण ही इनका त्याग किया गया है।
लहसून और प्याज दोनों ही गर्म तासीर के होते हैं।ये शरीर में गरमी पैदा करते हैं। इसलिए इन्हें तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा गया है। दोनों ही अपना असर गरमी के रूप में दिखाते हैं, शरीर को गरमी देते हैं जिससे व्यक्ति की काम वासना में बढ़ोतरी होते है। ऐसे में उसका मन अध्यात्म से भटक जाता है।
अध्यात्म में मन को एकाग्र करने के लिए, भक्ति के लिए वासना से दूर होना जरूरी होता है। केवल लहसून प्याज ही नहीं वैष्णव और जैन समाज ऐसी सभी चीजों से परहेज करते हैं जिससे की शरीर या मन में किसी तरह की तामसिक प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले।

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