शनिवार, 25 जून 2011

क्यों बनाई गई थी स्वयंवर की परंपरा?

प्राचीनकाल में स्वयंवर की प्रथा थी। उस समय विवाह आज की पद्धति के ठीक विपरीत था यानी लड़कियां अपनी इच्छा अनुसार वर का चुनाव करती थी। ऋगवेद के अनुसार स्त्री को अधिकार है कि वह किसे अपनी भावी संतान का पिता बनाए?
यह कोई छोटा-मोटा अधिकार नहीं है। इस अधिकार को पाकर ही स्त्री पति की आज्ञाकारिणी हो जाती है, नहीं तो विचारों के ना मिलने के कारण गृहस्थी चलना कई बार मुश्किल हो जाता है।
दरअसल वेदों में कहा गया है कि पति-पत्नी प्रेम से ही विवाह के एकता सूत्र को बांधे रख सकते हैं। जिसके लिए गृहस्थ आश्रम बनाया गया है। इसलिए उस समय ऐसी मान्यता थी कि प्रारंभ में ही यदि चुनाव ठीक नहीं हुआ तो जीवन शांति से नहीं चल सकता। इसीलिए विवाह में चुनाव एक जरूरी चीज है। जो वेदों के अनुसार पति को नहीं पत्नी को करना चाहिए।
इसका कारण यह है कि गृहस्थाश्रम का वास्तविक बोझ पत्नी पर ही होता है। उसे सन्तानोत्पति के समय भी कई तरह के कष्ट झेलने पड़ते हैं। इसीलिए जब उस पर इतनी जिम्मेदारी है और उसके लिए उसे पूरे जीवनभर इतना त्याग करना है। इसी सोच के साथ स्वयंवर की प्रथा बनाई गई व लड़कियों को वर के चुनाव का अधिकार दिया गया था।

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