राजा दशरथ को अयोध्या बुलाने के बाद राजा जनक ने सभी महाजनों को बुलाया और सभी ने आकर राजा को आदरपूर्वक सिर झुकाया। राजा ने कहा आप लोग मंडप सजाकर तैयार करो। यह सुनकर सभी ने अपना काम शुरू कर दिया। सोने के केले के खंबे बनाए। रत्नो से जड़ा मंडप बनाया। बहुत ही सुन्दर बंदरवार बनाए।
उस समय जिसने उस मंडप को देखा उसे बड़े से बड़े महल भी तुच्छ लगे।उधर जनकजी का दूत राजा दशरथ के पास आयोध्या पहुंच जाता है। राजा ने उस चिठ्ठी को लेकर उसे पढऩा शुरू किया तो उनकी आंखें भर आई। भरतजी अपने दोस्तों के साथ जहां खेलते थे। वहां जैसे उन्हें ये बात पता चली वे तुरंत राजमहल लौट आए। जब राजा ने पूरा पत्र पढ़ लिया उसके बाद दूतों को कहा मेरे दोनों बच्चे कुशल से तो है ना।
जिस दिन से वे मुनि विश्वामित्र के साथ गए तब से आज ही हमें उनकी सच्ची खबर मिल रही है। तब दूतों ने कहा आपके पुत्र पूछने योग्य नहीं है वे तीनों लोकों के लिए प्रकाश के समान है। सीताजी के स्वयंवर में बहुत से योद्धा आए थे। लेकिन शिवजी के धनुष कोई भी नहीं हटा सका। धनुष टूटने की बात सुनकर परशुरामजी को क्रोध आ गया। उन्होंने बहुत प्रकार से आंखें दिखाई। लेकिन रामचन्द्रजी का बल देखकर उन्हें अपना धनुष दे दिया।
उस समय जिसने उस मंडप को देखा उसे बड़े से बड़े महल भी तुच्छ लगे।उधर जनकजी का दूत राजा दशरथ के पास आयोध्या पहुंच जाता है। राजा ने उस चिठ्ठी को लेकर उसे पढऩा शुरू किया तो उनकी आंखें भर आई। भरतजी अपने दोस्तों के साथ जहां खेलते थे। वहां जैसे उन्हें ये बात पता चली वे तुरंत राजमहल लौट आए। जब राजा ने पूरा पत्र पढ़ लिया उसके बाद दूतों को कहा मेरे दोनों बच्चे कुशल से तो है ना।
जिस दिन से वे मुनि विश्वामित्र के साथ गए तब से आज ही हमें उनकी सच्ची खबर मिल रही है। तब दूतों ने कहा आपके पुत्र पूछने योग्य नहीं है वे तीनों लोकों के लिए प्रकाश के समान है। सीताजी के स्वयंवर में बहुत से योद्धा आए थे। लेकिन शिवजी के धनुष कोई भी नहीं हटा सका। धनुष टूटने की बात सुनकर परशुरामजी को क्रोध आ गया। उन्होंने बहुत प्रकार से आंखें दिखाई। लेकिन रामचन्द्रजी का बल देखकर उन्हें अपना धनुष दे दिया।
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