सोमवार, 20 जून 2011

तीर्थ पर जाने से पहले जरूर ध्यान रखें ये बात

तीन रात तक काम्यक वन में रहने के बाद युधिष्ठिर ने तीर्थयात्रा की तैयारी की। एक वनवासी ब्राह्मण उनके पास आकर बोले कि महाराज आप लोमेश मुनि के साथ तीर्थ की यात्रा करने जा रहे है। आप हमें भी अपने साथ ले चलिए, क्योंकि आपके बिना हमलोग तीर्थयात्रा करने में असमर्थ हैं। हिंसक पशु-पक्षी और कांटे आदि के कारण इन तीर्थों पर सामान्य मनुष्य नहीं जा सकते। आपके भाइयों के संरक्षण में रहकर हमलोग भी तीर्थयात्रा कर लेंगे। आपका ब्राह्मणों पर स्वाभाविक ही प्रेम है। इसलिए हम आपके साथ चलना चाहते हैं तब थोड़ी देर सोचने के बाद कहा चलिए आप भी हमारे साथ चल सकते हैं।
जब सभी तीर्थ यात्रा पर चलने को तैयार हो गए तो युधिष्ठिर ने सबकी शास्त्रोक्त विधि से पूजन किया। उन्होंने कहा- तीर्थ जाने के लिए शारीरिक शुद्धि और मानसिक शुद्धि दोनों की आवश्यकता होती है। मन की शुद्धि ही पूर्ण शुद्धि है। अब तुमलोग किसी के प्रति द्वेष बुद्धि ना रखकर सबके प्रति मित्रबुद्धि रखो। इससे तुम्हारी मानसिक शुद्धि हो जाएगी। ऋषियों की यह बात सुनकर द्रोपदी और पाण्डवों ने प्रतिज्ञा की कि हम ऐसा ही करेंगे। अब स्वास्तिवचन होने के बाद युधिष्ठिर ने सभी के चरण छूए और उसके बाद पांडवों ने अपनी

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