शुक्रवार, 24 जून 2011

भागवत २९६

पत्नी कैसी होनी चाहिए?
सुदामा के दाम्पत्य का आधार भगवान् थे, रामायण के प्रसंग से समझें। वाल्मिकी रामायण में वर्णन है कि भरत के साथ सैन्य, हाथी, नागरिक आदि आए थे-राम के चित्रकूट में रहने के कारण लोगों का आवागमन भी बढ़ गया था, ऋषि-मुनियों के जप-तप में विघ्न पड़ता था, वे चित्रकूट से दूर कहीं घने वन में चले गए थे और भरतजी के सैन्य से गंदगी फैल गई थी इसलिए श्रीराम ने चित्रकूट भी छोड़ दिया। अर्थ है चित्त में अपनों के प्रति जग राग हो तो विकार आता है - उस राग को भी चित्त से हटाना है क्योंकि जहां राग होगा वहां द्वेष भी होगा। इन राग द्वेष के रहते न तो जप हो पाता है और न ही तप और न ही योग इनसे परे ही साधक साधन कर सकता है। सीताजी को सती अनुसूयाजी अनेक दिव्य वस्त्र एवं अलंकार प्रदान कर महत्वपूर्ण उपदेश देती हैं। नारी के धर्म (कर्म) की प्रस्तुति अनुसूयाजी से अधिक तत्कालीन कोई अन्य नारी नहीं कर सकती थीं।

''मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुन राजकुमारी।
अमित दानि भर्ता बय देही। अधम सो नारि जो सेव न ते ही।।

धीरज धर्म मित्र अरू नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी।
बुद्ध रोग बस जड़ धन हीना। अंध बघिर क्रोधी अति दीना।।

ऐस हु पति कर किए अपमाना। नारि पाव जमपुर दुख नाना।
एकइ धर्म एक व्रत नेमा। कायं वचन मन पति पद प्रेमा।। -( रामायण अरण्य काण्ड दोहा 4 से)

और भी पतिव्रता के चार प्रकार बताते हुए उत्तम सपने में भी पर पुरुष का न दर्शन करने वाली मध्यम पुरुष को पिता, भाई, पुत्र सम देखने वाली - धर्म के अनुसार भय में रहने वाली तीसरे प्रकार की पतिव्रता और अवसर अनुसार व्यवहार करने वाली, मौका मिलने पर कदाचरण करने वाली अधम नारी नरक में वास करती है और भावी जन्म में विधवा होती है। पति की सेवा से जन्म से अपावन नारी शुभ गति प्राप्त कर लेती है। पतिव्रता नारियां संसार का हित करती हैं अर्थात संभ्रान्त, कुलीन सम्य चरित्रवान नागरिकों को जन्म देने से बढ़कर अन्य कोई सांसारिक और सामाजिक हित नहीं हो सकता।
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