सीताजी के मंडप में आने के बाद कुलगुरू ने मंत्रजप शुरू किया गया। गौरीजी व गणेशजी की स्थापना की गई। सभी देवताओं ने प्रकट होकर पूजा ग्रहण की। सीताजी व रामजीएक-दूसरे को इस तरह देख रहे हैं। जिससे दूसरों को कुछ पता नहीं चल रहा है। चारों और से देवता फूल बरसा रहे हैं। महिलाएं मंगलगीत गा रही है। तभी जनक जी श्री रामजी के चरणों को धोने लगे। उनके चरण धोते हुए जनकजी फूले नहीं समा रहे है। जिनके स्पर्श से गौतम मुनि की स्त्री अहिल्या ने परमगति प्राप्त हुई।
दोनों कुलों के गुरू वर और कन्या की हथेलियों को मिलाकर मंत्रोच्चार करने लगे। पाणिग्रहण हुआ देखकर देवता, मनुष्य , मुनि आदि सभी आनन्द से भर गया। रामजी व सीताजी के सिर में सिंदूर भर रहे हैं। उसके बाद रामजी और जनकजी आसन पर बैठे। उन्हें देखकर दशरथजी मन ही मन आनंदित हुए। जानकीजी की छोटी बहिन उर्मिलाजी को सब सुंदरियों में शिरोमणि जानकर उनसे लक्ष्मणजी का ब्याह कर दिया गया। सीताजी की एक ओर बहन जिनका नाम श्रुतकीर्ति है जो सुंदर नेत्रोंवाली, सुन्दर व कमल के समान चेहरे वाली और वे सब गुणों की खान है उनसे शत्रुघ्र का विवाह कर दिया गया। दहेज इतना अधिक है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
दोनों कुलों के गुरू वर और कन्या की हथेलियों को मिलाकर मंत्रोच्चार करने लगे। पाणिग्रहण हुआ देखकर देवता, मनुष्य , मुनि आदि सभी आनन्द से भर गया। रामजी व सीताजी के सिर में सिंदूर भर रहे हैं। उसके बाद रामजी और जनकजी आसन पर बैठे। उन्हें देखकर दशरथजी मन ही मन आनंदित हुए। जानकीजी की छोटी बहिन उर्मिलाजी को सब सुंदरियों में शिरोमणि जानकर उनसे लक्ष्मणजी का ब्याह कर दिया गया। सीताजी की एक ओर बहन जिनका नाम श्रुतकीर्ति है जो सुंदर नेत्रोंवाली, सुन्दर व कमल के समान चेहरे वाली और वे सब गुणों की खान है उनसे शत्रुघ्र का विवाह कर दिया गया। दहेज इतना अधिक है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें