लोमेश मुनि की यह बात सुनकर युधिष्ठिर ने भाइयों और द्रोपदी के साथ उस तीर्थ में स्नान करने से उनका तेजस्वी शरीर और ज्यादा तेजस्वी लगने लगा। स्नान के बाद युधिष्ठिर ने लोमेश मुनि से पूछा मुनि बताइए कि इस तीर्थ में स्नान से अपना खोया तेज किस तरह प्राप्त हुआ। लोमेश मुनि बोले युधिष्ठिर में आपको परशुरामजी का चरित सुनाता हूं। आप सावधान होकर सुनिए। महाराज दशरथजी के यहां भगवान विष्णु ने ही रावण के वध के लिए रामवतार धारण किया। रामजी ने अपने बचपन में ही बहुत से पराक्रम के काम किए थे। उनके बारे में सुनकर परशुरामजी को बहुत आश्चर्य हुआ। वे अपना क्षत्रियों का संहार करने वाला धनुष लेकर उनके साथ ही अयोध्या आए।
जब राजा दशरथ को उनके आने के बारे में पता चला तो वे रामजी को सबसे आगे रखकर उन्हें राज्य की सीमा पर भेजा। परशुरामजी ने राम जी से कहा मेरा यह धनुष काल के समान कराल है। यदि तुममें बल हो तो इसे चढ़ाओ। तब रामजी ने उनके हाथ से वह धनुष लेकर उसे खेल ही खेल में चढ़ा दिया। फिर मुस्कुराते हुए उससे टंकार किया। इसके बाद परशुरामजी ने कहा लीजिए आपका धनुष तो चढ़ा दिया, अब और क्या सेवा करूं? तब परशुरामजी ने उन्हें एक दिव्य बाण देकर कहा इसे धनुष पर लगाकर तुम्हारे कान तक खींच कर बताओ।
यह सुनकर रामजी समझ गए कि परशुरामजी अभिमानी हैं। रामजी ने उनसे कहा आप ने पितामाह ऋत्वीक की कृपा से विशेषत: क्षत्रियों को हराकर ही यह तेज प्राप्त किया है। इसीलिए निश्चित ही आप मेरा भी तिरस्कार कर रहे हैं। मैं आपको दिव्य नेत्र देता हूं। उनसे आप मेरे रूप को देखिए। तब परशुरामजी ने रामजी मे सारी श्रृष्ठि को देखा। रामजी ने बाण छोड़ा तो वज्रपात होने लगा।
रामजी उस बाण से परशुरामजी को भी व्याकुल कर दिया। उनके शरीर से मानों तेज गायब हो गया। वे निस्तेज हो गए। इस तरह परशुरामजी का घमंड चूर-चूर हो गया। उन्होंने कहा तुमने साक्षात विष्णु के सामने ठीक से बर्ताव नहीं किया। अब तुम जाकर नदी में स्नान करो तभी तुम्हे तुम्हारा तेज फिर से प्राप्त होगा। इस तरह अपने पितृजन के कहने पर परशुरामजी ने वहां स्रान किया और अपना खोया तेज प्राप्त किया।
जब राजा दशरथ को उनके आने के बारे में पता चला तो वे रामजी को सबसे आगे रखकर उन्हें राज्य की सीमा पर भेजा। परशुरामजी ने राम जी से कहा मेरा यह धनुष काल के समान कराल है। यदि तुममें बल हो तो इसे चढ़ाओ। तब रामजी ने उनके हाथ से वह धनुष लेकर उसे खेल ही खेल में चढ़ा दिया। फिर मुस्कुराते हुए उससे टंकार किया। इसके बाद परशुरामजी ने कहा लीजिए आपका धनुष तो चढ़ा दिया, अब और क्या सेवा करूं? तब परशुरामजी ने उन्हें एक दिव्य बाण देकर कहा इसे धनुष पर लगाकर तुम्हारे कान तक खींच कर बताओ।
यह सुनकर रामजी समझ गए कि परशुरामजी अभिमानी हैं। रामजी ने उनसे कहा आप ने पितामाह ऋत्वीक की कृपा से विशेषत: क्षत्रियों को हराकर ही यह तेज प्राप्त किया है। इसीलिए निश्चित ही आप मेरा भी तिरस्कार कर रहे हैं। मैं आपको दिव्य नेत्र देता हूं। उनसे आप मेरे रूप को देखिए। तब परशुरामजी ने रामजी मे सारी श्रृष्ठि को देखा। रामजी ने बाण छोड़ा तो वज्रपात होने लगा।
रामजी उस बाण से परशुरामजी को भी व्याकुल कर दिया। उनके शरीर से मानों तेज गायब हो गया। वे निस्तेज हो गए। इस तरह परशुरामजी का घमंड चूर-चूर हो गया। उन्होंने कहा तुमने साक्षात विष्णु के सामने ठीक से बर्ताव नहीं किया। अब तुम जाकर नदी में स्नान करो तभी तुम्हे तुम्हारा तेज फिर से प्राप्त होगा। इस तरह अपने पितृजन के कहने पर परशुरामजी ने वहां स्रान किया और अपना खोया तेज प्राप्त किया।
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