शनिवार, 25 जून 2011

भागवत २९८

ऐसी थी कृष्ण सुदामा की दोस्ती
उसने कहा खाली हाथ नहीं जाएंगे तो चिवड़ा रख लिया और आ गए। अब उसने पहली बार देखे राजमहल और द्वारपाल तो उसने सोचा कि राजा है तो पता नहीं अंदर बुलाए या नहीं बुलाए, प्रतीक्षा करनी पड़े लेकिन कृष्ण को दौड़ता हुआ आता देखकर सुदामा को कुछ समझ में नहीं आया और जब तक कि सुदामा की आंख खुलती तब तक भगवान् ने सुदामा को बाहों में भर लिया। सुदामा मूच्र्छि्रत हो गए। जो भगवान् की बाहों में जाता है फिर उसको होश नहीं रहता है। भगवान् ने सुदामा से कहा-अरे मित्र अचानक, कोई खबर नहीं चलिए अन्दर आइए। अन्दर लाए, सुदामा डरते-डरते वैभव देखते आ रहे हैं। राजसभा में ले गए। तब तक तो लोग इक_े हो गए। रानियां आ गईं। सबने सोचा चलो कोई अतिथि आया है और सुदामा से बोलते हैं यहां बैठ जाओ। सुदामा बेचारा क्या जाने क्या है यह बैठ गया, राजगादी थी वह। जिस राजगादी पर कृष्ण बैठते थे उस राजगादी पर सुदामा बैठ गए। रानियों को आश्चर्य हुआ जिस राजगादी के आसपास से हवा को भी निकलने के लिए कृष्ण से इजाजत लेनी पड़ती हो उस पर सुदामा को बैठा दिया भगवान ने। बैठ गया दोस्त। तत्काल रूक्मिणीजी ने सेवादारों को बोला, इस पर यह बैठ गए हैं तो भगवान् कहां बैठेंगे, एक और राजगादी लाओ।
पहरेदार लाए इससे पहले तो भगवान् सुदामा के पैरों में बैठ गए। उसकी जंघाओं पर हाथ रखा। इतने दिन बाद आए हो मित्र। सुदामा कहने लगे नीचे मत बैठो, मैं भी नीचे बैठ जाता हूं। कृष्ण ने कहा-आज तुझे वहीं बैठना है। अब तक तो लोगों को समझ में आ गया। रानियों को लगा कि बालसखा आया है। रानियों से कहा इसके स्वागत की तैयारी करो। मेरा मित्र आया है भोजन के थाल लाओ। उन्होंने कहा-बहुत दूर से चलकर आया है इसके पैर में कांटे लगे हैं, रक्त है।
पहले पाद प्रक्षालन किया जाएगा। भगवान् ने अपने दोस्त के पैर धोए। भगवान् क्यों पैर धो रहे हैं, क्योंकि सुदामा सच्चा ब्राह्मण और बड़ा भक्त था। भगवान् भक्त के चरण प्रक्षालन में कोई भी देर नहीं करते। सुदामा की आंख से आंसू निकल रहे हैं। भगवान् भी रो रहे हैं अब तो पता ही नहीं लग रहा है कौन जल है और कौन आंसू। भगवान् ने अपने मित्र को बड़ा सम्मान दिया। उसके बाद थोड़ा समय बीता तो भगवान् ने कहा नए वस्त्र लेकर आओ हमारे मित्र को पहनाओ, तैयार करो। सुदामाजी को तैयार किया गया। www.bhaskar.com

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