गुरुवार, 2 जून 2011

शादी के बाद लड़की का सरनेम क्यों बदला जाता है?

कहते हैं शादी एक ऐसा बंधन है जिससे किसी लड़की की जिंदगी बदल जाती है। लेकिन शादी के बाद सिर्फ जिंदगी ही नहीं सरनेम भी बदल जाता है। यह प्रथा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के तकरीबन सभी देशों में है। शादी के बाद लड़कियों के नाम के साथ उनके पिता का नहीं बल्कि उनके पति का सरनेम लगाया जाता है। परिवार के सभी सदस्यों का सरनेम एक होने पर समाज में किसी व्यक्ति की पहचान उसके पारिवारिक सरनेम से होती है। इससे परिवार के सदस्यों के बीच एकता की भावना का भी अहसास होता है।
इससे यह भी व्यक्त होता है कि लड़की को ससुराल में स्वीकार कर लिया गया है और वह शादी के बाद ससुराल में रच-बस गयी है। इससे लड़की के ससुराल वालों को यह एहसास होता है कि बहू भी हमारे घर की ही है इसलिए वे बहू के साथ बेटी जैसा व्यवहार करते हैं। पति का सरनेम अपनाने से लड़की का अपने पति और ससुराल वालों के प्रति आदर भी व्यक्त होता है। इसके अलावा यह किसी लड़की के त्याग और अपनानपन की भावना के साथ-साथ परिवार की प्रतिष्ठा को भी दर्शाता है। किसी शादीशुदा महिला के द्वारा पति का सरनेम अपनाने के कई फायदे हैं। यह प्रथा समाज में शादीशुदा महिला की स्थिति को और मजबूत करता है। जब कोई महिला अपने पारिवारिक सरनेम को हटाकर अपने पति का सरनेम लगाती है तो इससे यह पता चल जाता है कि वह शादीशुदा है और उसे अविवाहित महिलाओं से अलग करना आसान हो जाता है।
इस प्रथा को लागू करने का उद्देश्य यही है कि परिवार के हर सदस्य को एक समान परिवार का नाम मिलना चाहिए। इससे लड़की को समाज में आदर भी मिलता है। शादीशुदा महिला न सिर्फ अपने पति के परिवार के सरनेम को अपनाती है बल्कि वह अपने पति के लाइफ स्टाइल को भी अपनाती है। इससे पति के प्रति उसके सच्चे प्यार और आदर की भावना का पता चलता है। इसके उलट जब कोई पत्नी अपने पति के सरनेम को नहीं अपनाती है तो माना जाता है कि उसके दिल में अपने पति के प्रति सच्चे प्यार और आदर की भावना नहीं है।

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