गुरुवार, 23 जून 2011

गृहस्थी तभी सुखी हो सकती है जब....

यह तप की भूमि बहुत पवित्र है। किसी भी तरह से हमें इसे अपवित्र नहीं करना चाहिए। यह सुनकर अगस्त्यजी बोले- तुम्हारे घर में जो धन था, वह ना तुम्हारे पास है ना मेरे पास फिर ऐसा कैसे हो सकता है। लोपामुद्रा बोली- स्वामी तपोधन से बड़ा कोई धन इस संसार में नहीं है। आप उससे सबकुछ एक ही क्षण में प्राप्त कर सकते हैं। तब अगस्त्य ऋषि ने कहा वो तो ठीक है लेकिन इससे मेरे तप का क्षय होगा अब तुम कोई ऐसा उपाय बताओ कि मेरा तप भी क्षीण ना हो और तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जाए। लोपामुद्रा ने कहा मैं आपका तप क्षीण नहीं करना चाहती।
इसलिए आप उसकी रक्षा करते हुए मेरी कामना पूर्ण करें। तब अगस्त्य ऋषि राजा श्रुतर्वा के पास गए। वहां राजा ने उनका खूब सेवा सत्कार किया। उसके बाद अगस्त्य ऋषि ने राजा से कहा - राजन् आपके पास मैं धन की इच्छा लेकर आया हूं। आपको जो भी धन दूसरों को कष्ट पहुंचाये बिना मिला हो उसमें से आप मुझे अपनी शक्ति के अनुसार दान दे दीजिए। अगस्त्य ऋषि की बात सुनका राजा ने अपना सारा हिसाब उनके सामने रख दिया। जब मुनि ने देखा कि इनका तो आय व व्यय दोनों बराबर है। उसमें से थोड़ा सा भी लेने पर प्राणियों को दुख होगा। इसलिए उन्होंने कुछ नहीं लिया। फिर वे श्रुतर्वा को साथ लेकर वे राजा व्रन्धŸवके पास चले वहां भी वही हुआ जो श्रुर्तवा के यहां हुआ था। उनका आय व व्यय दोनों ही बराबर था। इस तरह जब उन्हें सभी राजाओं के पास ऐसा धन नहीं मिला तो वे सभी राजाओं के परामर्श पर इल्वल नाम के एक दैत्य के पास गए। वह दानव बड़ा ही धनवान था।
जब उसे इस बात का पता चला कि अगस्त्य मुनि उसके पास दानवों को लेकर आ रहे हैं तो वह उन्हें लेने गया। उनक ा आदर-सत्कार किया। फिर उसने पूछा बताइये मुनि मैं आपकी क्या सेवा करूं तब मुनि अगस्त्य ने सारी बात बताई।अगस्त्य ने उनसे अपनी आवश्यकता अनुसार धन दान में लिया और लोपामुद्रा की सारी इच्छाएं पूरी की। तब लोपामुद्रा ने कहा- आपने मेरी सारी इच्छाएं पूरी कर दीं, अब मैं हमारे एक पराक्रमी पुत्र को जन्म देना चाहती हूं।

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