सोमवार, 18 जुलाई 2011

...तो परशुरामजी ने सारे क्षत्रियों को मार डाला

एक बार इसी तरह उनके सब पुत्र बाहर गए थे। उसी समय अनूप देश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन उनके आश्रम आ गया। जिस समय वह आश्रम आया। मुनिपत्नी रेणुका ने उसका आतिथ्य स्वीकार किया। उसने सत्कार की कुछ कीमत न करके आश्रम की होमधेनु के डकारते रहने पर भी उसके बछड़े को हर लिया। वहां के पेड़ आदि भी तोड़ दिए। जब परशुरामजी आश्रम में आए तो स्वयं जमदग्नि जी ने उनसे सारी बात कहीं। उन्होंने होम की गाय को भी रोते देखा। यह सुनकर और देखकर वे बहुत दुखी हुए। वे सहस्त्रार्जुन के पास आए और उसकी सैकड़ो भुजाओं को काट दिया और उसे काल के हवाले कर दिया। इससे सहस्त्रार्जुन के पुत्रों को बहुत दुख हुआ।
उन्होंने एक दिन परशुरामजी की अनुपस्थिति में जमदग्रि के आश्रम पर हमला बोल दिया। जब वे उनकी हत्या करके चले गए। उसके कुछ देर बाद परशुरामजी समिधा लेकर आश्रम पहुंचे। वहां अपने पिताजी को मरे हुए देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। वे फूट-फूटकर रोने लगे। कुछ समय तक करूणा पूर्वक विलाप करते रहे, फिर उन्होंने अपने पिता का अग्रि संस्कार किया और प्रतिज्ञा की में सारे क्षत्रियों का संहार कर दूंगा। उन्होंने अकेले ही कार्तवीर्य के सब पुत्रों को मार डाला। उन्होंने पूरी पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियहीन कर दिया। www.bhaskar.com

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