कहते हैं सभी को अपने कर्मों का परिणाम भुगतना पड़ता है। कई बार तो इस जन्म के कर्मों का हिसाब यहीं चुक्ता हो जाता है। पिछले कर्मों ने ही आज की परिस्थितियों का निर्माण किया है तथा आज किये जा रहे कर्म ही इंसान का भविष्य गढ़ते हैं। कर्मों के परिणाम से आज तक कोई भी बच नहीं पाया है।
कर्मों के फल या परिणाम किस तरह हमारे सामने आते हैं इस बात को आसानी से जहन में उतारने के लिये आइये चलते हैं एक बेहद प्यारी कहानी की ओर...
एक बार देवमुनि नारदजी पृथ्वी भ्रमण के लिये आए। उन्हें एक बेहद गरीब व्यक्ति मिला जिसे पेट भरने लायक खाना भी नसीब नहीं हो रहा था। दूसरी तरफ बहुत अमीर व्यक्ति मिला जिससे अपनी दौलत संभालते भी नहीं बन रहा था। अमीर होकर भी वह अंशात था, उसे हर समय यही चिंता रहती कि कोई उसका नुकसान न कर दे। दौलत को और ज्यादा बढ़ाने की उधेड़-बुन में ही वह रात-दिन चिंतित रहता था।
नारदजी और आगे बढ़े तो उन्हें कुछ बनावटी व ढ़ोंगी साधुओं की मंडली मिली। उन्होंने नारदजी को पहचानकर घेर लिया और बोले- ''स्वर्ग में अकेले मजे करते हो! हम भी भगवान की पूजा-पाठ करते हैं, हमारे लिये भी स्वर्ग जैसे ठाट-बाट की व्यवस्था करो वरना चिमटे मार-मार कर हालत खराब कर देंगे। नारदजी जैसे-तैसे उनसे अपनी जान छुड़ाकर वहां से भागे और सीधे भगवान के पास पहुंचकर अपना हाल सुनाया। भगवान नारायण हंसे और बोले- '' देखो नारद! मैं हर मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार ही फल देता हूं। मेरे मन में आस्तिक और नास्तिक का भी भेद नहीं है। तुम अगली बार पृथ्वी पर जाओ तो उस गरीब आदमी से कहना कि - वह उपनी गरीबी से लड़े तथा खूब मेहनत और पुरुषार्थ करे, मैं निश्चित रूप से उसे सारे दुखों और गरीबी से मुक्त कर दूंगा।
उस अमीर व्यक्ति से कहना कि- इतनी सारी धन-दौलत तुम्हें समाज की भलाई में खर्च करने के लिये मिली है, उसे अच्छे कार्यो में लगाए ऐसा करने पर उसे भौतिक सुख-सुविधाओं के साथ-साथ मानसिक शांति और परमानंद की प्रसाद भी मिल जाएगी।
...और उन झूठे साधुओं की मंडली से कहना कि- त्यागी, धार्मिक और सज्जनों का वेश बनाकर अपने स्वार्थों को पूरा करने की फिराक में रहने वाले आलसियों तुम्हारी हर हाल में दुर्गति होगी। तुम्हें नर्क जैसे निकृष्टतम स्थानों पर अनंतकाल तक रहना पड़ेगा।
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कर्मों के फल या परिणाम किस तरह हमारे सामने आते हैं इस बात को आसानी से जहन में उतारने के लिये आइये चलते हैं एक बेहद प्यारी कहानी की ओर...
एक बार देवमुनि नारदजी पृथ्वी भ्रमण के लिये आए। उन्हें एक बेहद गरीब व्यक्ति मिला जिसे पेट भरने लायक खाना भी नसीब नहीं हो रहा था। दूसरी तरफ बहुत अमीर व्यक्ति मिला जिससे अपनी दौलत संभालते भी नहीं बन रहा था। अमीर होकर भी वह अंशात था, उसे हर समय यही चिंता रहती कि कोई उसका नुकसान न कर दे। दौलत को और ज्यादा बढ़ाने की उधेड़-बुन में ही वह रात-दिन चिंतित रहता था।
नारदजी और आगे बढ़े तो उन्हें कुछ बनावटी व ढ़ोंगी साधुओं की मंडली मिली। उन्होंने नारदजी को पहचानकर घेर लिया और बोले- ''स्वर्ग में अकेले मजे करते हो! हम भी भगवान की पूजा-पाठ करते हैं, हमारे लिये भी स्वर्ग जैसे ठाट-बाट की व्यवस्था करो वरना चिमटे मार-मार कर हालत खराब कर देंगे। नारदजी जैसे-तैसे उनसे अपनी जान छुड़ाकर वहां से भागे और सीधे भगवान के पास पहुंचकर अपना हाल सुनाया। भगवान नारायण हंसे और बोले- '' देखो नारद! मैं हर मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार ही फल देता हूं। मेरे मन में आस्तिक और नास्तिक का भी भेद नहीं है। तुम अगली बार पृथ्वी पर जाओ तो उस गरीब आदमी से कहना कि - वह उपनी गरीबी से लड़े तथा खूब मेहनत और पुरुषार्थ करे, मैं निश्चित रूप से उसे सारे दुखों और गरीबी से मुक्त कर दूंगा।
उस अमीर व्यक्ति से कहना कि- इतनी सारी धन-दौलत तुम्हें समाज की भलाई में खर्च करने के लिये मिली है, उसे अच्छे कार्यो में लगाए ऐसा करने पर उसे भौतिक सुख-सुविधाओं के साथ-साथ मानसिक शांति और परमानंद की प्रसाद भी मिल जाएगी।
...और उन झूठे साधुओं की मंडली से कहना कि- त्यागी, धार्मिक और सज्जनों का वेश बनाकर अपने स्वार्थों को पूरा करने की फिराक में रहने वाले आलसियों तुम्हारी हर हाल में दुर्गति होगी। तुम्हें नर्क जैसे निकृष्टतम स्थानों पर अनंतकाल तक रहना पड़ेगा।
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