कहते हैं कि धन-दौलत पाने पर अक्सर व्यक्ति का दिमाग ठिकाने पर नहीं रहता। इसी दुनिया में खुद हमने ही देखा है कि कितने ही लोग हैं जो सुख-समृद्धि पाते ही गलत रास्ते पर या अय्याशी, आलस्य और दिखावे के रास्ते पर चल पड़ते हैं, जबकि पद, पैसा और प्रतिष्ठा पाकर भी जिनके कदम नहीं लडख़ड़ाते वही लंबे समय तक कामयाबी के शिखर पर टिक पाते हैं।
पद-प्रतिष्ठा पाने पर भी व्यक्ति को कैसे धैर्य और संयम की जरूरत होती है, यह जानने के लिये आइये चलते हैं एक सुंदर कथा की ओर....
यह एक ऐतिहासिक और वास्तविक घटना है- नादिरशाह करनाल (हरियाणा) के मैदान में मुहम्मदशाह की सेना को पराजित करके दिल्दी पहुंचा। मुहम्मदशाह को हराने के बावजूद नादिरशाह ने शिष्टाचाार के नाते उसे अपने बास ही बैठाया। नादिरशाह को प्यास लगी तो उसने पानी मांगा। पुराने शाही ठाट-बाट की परंपरा के चलते पानी मांगने पर तुरंत वहां नगाड़ा बजने लगा जैसे वहां कोई बड़ा उत्सव मन रहा हो। दस-बारह सेवक पूरे राजसी अदब के साथ दौड़कर आए। किसी के पास पानी से भरा सोने का पात्र जो हीरे-मातियों से सजा था, किसी के पास रूमाल, किसी के पास केवड़ा....। नादिरशाह को यह सब नाटक और अनावश्यक दिखावा- आडम्बर देखकर बड़ा बेतुका लगा। चिढ़कर नादिरशाह ने अपने पर्सनल भिस्ती को आवाज लगाई। भिस्ती तत्काल दौड़कर आया तो नादिरशाह ने अपने सिर का लोहे का टोप आगे कर दिया और उसमे पानी लेकर अपनी प्यास बुझाकर असली यौद्धा सैनिक जैसा व्यवहार किया। नादिरशाह के इस व्यवहार को देखकर सारे दरबारी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। क्योंकि अभी तक उन्होंने शाही ठाट-बाट का बढ़-चढ़ कर दिखावा ही होते हुए देखा था।
वीर नादिरशाह दरबारियों के मन की बात समझ गया। वह बड़े ही गंभीर स्वर में मुहम्मदशाह और बाकी दरबारियों की और मुखातिब होकर बोला- '' यदि हम भी तुम्हारी तरह दिखावे और अय्यासी की जिंदगी जीने का शौक रखते तो विजेता बनकर ईरान से भारत तक नहीं पहुंच पाते। तुम पर हमारी जीत का अहम् कारण दिखावे से दूरी और सच्चे सैनिक का जीवन जीना ही है''
नादिरशाह की बात सुनकर मुहम्मदशाह और उसके अय्याश दरबारियों के सर शर्म जिल्लत से नीचे झुक गए।
.....इस कथा का सबसे कीमती सबक यही है कि विजेता बनने और फिर बने रहने के लिये व्यक्ति में संयम, सादगी और
लगातार कठोर परिश्रम की खूबियों का होना बहुत अनिवार्य है।
www.bhaskar.com
पद-प्रतिष्ठा पाने पर भी व्यक्ति को कैसे धैर्य और संयम की जरूरत होती है, यह जानने के लिये आइये चलते हैं एक सुंदर कथा की ओर....
यह एक ऐतिहासिक और वास्तविक घटना है- नादिरशाह करनाल (हरियाणा) के मैदान में मुहम्मदशाह की सेना को पराजित करके दिल्दी पहुंचा। मुहम्मदशाह को हराने के बावजूद नादिरशाह ने शिष्टाचाार के नाते उसे अपने बास ही बैठाया। नादिरशाह को प्यास लगी तो उसने पानी मांगा। पुराने शाही ठाट-बाट की परंपरा के चलते पानी मांगने पर तुरंत वहां नगाड़ा बजने लगा जैसे वहां कोई बड़ा उत्सव मन रहा हो। दस-बारह सेवक पूरे राजसी अदब के साथ दौड़कर आए। किसी के पास पानी से भरा सोने का पात्र जो हीरे-मातियों से सजा था, किसी के पास रूमाल, किसी के पास केवड़ा....। नादिरशाह को यह सब नाटक और अनावश्यक दिखावा- आडम्बर देखकर बड़ा बेतुका लगा। चिढ़कर नादिरशाह ने अपने पर्सनल भिस्ती को आवाज लगाई। भिस्ती तत्काल दौड़कर आया तो नादिरशाह ने अपने सिर का लोहे का टोप आगे कर दिया और उसमे पानी लेकर अपनी प्यास बुझाकर असली यौद्धा सैनिक जैसा व्यवहार किया। नादिरशाह के इस व्यवहार को देखकर सारे दरबारी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। क्योंकि अभी तक उन्होंने शाही ठाट-बाट का बढ़-चढ़ कर दिखावा ही होते हुए देखा था।
वीर नादिरशाह दरबारियों के मन की बात समझ गया। वह बड़े ही गंभीर स्वर में मुहम्मदशाह और बाकी दरबारियों की और मुखातिब होकर बोला- '' यदि हम भी तुम्हारी तरह दिखावे और अय्यासी की जिंदगी जीने का शौक रखते तो विजेता बनकर ईरान से भारत तक नहीं पहुंच पाते। तुम पर हमारी जीत का अहम् कारण दिखावे से दूरी और सच्चे सैनिक का जीवन जीना ही है''
नादिरशाह की बात सुनकर मुहम्मदशाह और उसके अय्याश दरबारियों के सर शर्म जिल्लत से नीचे झुक गए।
.....इस कथा का सबसे कीमती सबक यही है कि विजेता बनने और फिर बने रहने के लिये व्यक्ति में संयम, सादगी और
लगातार कठोर परिश्रम की खूबियों का होना बहुत अनिवार्य है।
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