बुधवार, 20 जुलाई 2011

राजकुमारी ने अनजाने में ऋषि च्यवन की आंखें फोड़ दी तो.....

इस तरह उस तीर्थ की कहानी सुनने के बाद पांडव शर्याति यज्ञ स्थान पर पहुंचे। लोमेश मुनि ने एक स्थान कि ओर संकेत करते हुए युधिष्ठिर से कहा महाराज यह शर्याति यज्ञ स्थान है। यहां कौशिक मुनि ने अश्विनीकुमार सहित सौमपान किया था। इसी स्थान पर महर्षि च्यवन ने इन्द्र को स्तब्ध कर दिया था। यहीं उन्हें राजकुमारी सुकन्या प्राप्त हुई थी। तब युधिष्ठिर ने पूछा च्यवनमुनि को क्रोध क्यों हुआ? उन्होंने इन्द्र को स्तब्ध क्यों किया? अश्विनीकुमारों को उन्होंने सोमपान का अधिकारी कैसे बनाया?

महर्षि भृगु का च्यवन नामक एक बड़ा ही तेजस्वी पुत्र था। वह इस सरोवर के तट पर तपस्या करने लगा। वह मुनिकुमार बहुत समय तक वृक्ष के समान निश्चल रहकर एक ही स्थान पर वीरासन में बैठा रहा। धीरे -धीरे अधिक समय बीतने पर उसका शरीर घास और लताओं से ढक लिया। उनके शरीर पर चीटियों ने अड्डा जमा लिया। वे चारों तरफ से देखने पर केवल मिट्टी का एक पिंड जान पड़ते थे। इस तरह बहुत समय बीत गया। एक दिन राजा शर्याति इस सरोवर पर क्रीडा करने के लिए आया। उसकी चार सुन्दरी रानियां और एक सुंदर कन्या थी। उसका नाम सुकन्या थी। वह कन्या अपनी सहेलियों के साथ टहलती हुई च्यवन मुनि के उस बांबी के पास आ गई उसमें से च्यवन मुनि की चमकती आंखे देखकर उसे कौतुहल हुआ। फिर उसने बुद्धि भ्रमित हो जाने से उसे कांटे से छेद दिया। इस प्रकार आंखे फूट जाने के कारण उन्हें बहुत दुख हुआ और उन्होंने शर्याति की सेना के मल-मूत्र बंद कर दिए।

सेना कि यह दशा देखकर राजा ने पूछा यहां च्यवनऋषि रहते हैं। वे स्वभाव के बहुत क्रोधी हैं। उनका जाने-अनजाने में किसने अपमान किया है। यह बात जब सुकन्या को मालूम हुई तो उसने कहा मैं घूमती-घूमती बांबी के पास आ गई। वहां मैंने उस बांबी में जुगनू से चमकते हुए जीव को छेद दिया। यह सुनकर शर्याति तुरंत ही बांबी के पास गए। वहां उन्हें च्यवन ऋषि दिखाई दिए। राजा ने उनसे क्षमा मांगी। तब उन्होंने कहा इस गर्वीली कन्या जिसने मेरी आंखें फोड़ी हैं। मैं इसे पाकर ही क्षमा कर सकता हूं।

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