बुधवार, 27 जुलाई 2011

जरूरी है अपने अंदर की शक्ति को जगाना क्योंकि....

इस विषय में मैं तुम्हे एक पुरानी कथा बताता हूं। यह नारद और ऋषि श्रेष्ठ नारायण का संवाद है। एक समय की बात है नारदजी विभिन्न लोकों में विचरण करने के लिए बदरिकाश्रम गए। वे कलापग्रामवासी सिद्ध ऋषियों के बीच में बैठे हुए थे। उस समय नारदजी ने उन्हें प्रणाम करके बड़ी नम्रता से यही प्रश्न पूछा, जो तुम मुझसे पूछ रहे हो। भगवान नारायण ने ऋषियों की उस भरी सभा में नारदजी को उनके प्रश्न का उत्तर दिया और वह कथा सुनाई जो पूर्वकालीन जनलोकनिवासियों में परस्पर वेदों के तात्पर्य और ब्रम्ह के स्वरूप के सम्बन्ध में विचार करते समय कही गई थी।
भगवान नारायण ने कहा-नारदजी! पुराने समय की बात है। एक बार जनलोक में वहां रहने वाले ब्रम्हा के मानस पुत्र नैष्ठिक ब्रम्हचारी सनक, सनन्दन, सनातन आदि परमर्षियों का ब्रम्हसत्र यानी प्रवचन हुआ था। उस समय तुम मेरी श्वेत द्वीपाधिपति अनिरूद्ध-मूर्तिका दर्शन करने के लिए श्वेतद्वीप चले गए थे। उस समय वहां उस ब्रम्ह के सम्बन्ध में बड़ी ही सुन्दर चर्चा हुई थी।सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार-ये चारों भाई शास्त्रीय ज्ञान, तपस्या और शील-स्वभाव में समान हैं। उन्होंने अपने में से सनन्दन को तो वक्ता बना लिया और शेष भाई श्रोता बनकर बैठ गए। अद्भुत सत्संग हुआ था वह।
सनन्दनजी ने कहा-जिस प्रकार प्रात:काल होने पर सोते हुए सम्राट को जगाने के लिए वंदीजन उसके पास आते हैं और सम्राट के पराक्रम तथा सुयश का गान करके उसे जगाते हैं, वैसे ही जब परमात्मा अपने बनाए हुए सम्पूर्ण जगत को अपने में लीन करके अपनी शक्तियों के सहित सोये रहते हैं तब प्रलय के अन्त में श्रुतियां उनका प्रतिपादन करने वाले वचनों से उन्हें इस प्रकार जगाती हैं।अब आगे भागवत में दार्शनिक प्रसंग आया है। परीक्षित ने श्रुतियों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछा है। श्रुतियों में (यानी वेद के शब्दों में) भगवान के स्वरूप का वर्णन किस प्रकार किया जाता है। शुकदेवजी द्वारा जो उत्तर दिया गया उसे भागवत में संतों ने वेद स्तुति का नाम दिया है। यह प्रसंग एक गहरा वार्तालाप है।श्रुतियां परमात्मा को जगा रही हैं यह प्रतिकात्मक घटना है। हम भी अपने भीतर रह रहे परमात्मा को ऐसे ही उठाएं। भक्त अपनी इन्द्रियों से श्रुतियंों का काम लेता है। इस उदाहरण में एक कथन स्मरण करने योग्य है।

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