बुधवार, 27 जुलाई 2011

इसलिए बाज ने राजा से मांगा उनका मांस...

युधिष्ठिर व अन्य पांडव लोमेश मुनि के साथ कई तीर्थो की यात्रा करते हुए। उज्जानक तीर्थ पहुंचे। इसके पास ही यह कुशवान सरोवर है। यहीं राजा उशीनर इन्द्र से अधिक धार्मिक हो गए थे। इसीलिए अग्रि और इन्द्र दोनों उनकी परीक्षा लेने पहुंचे। इन्द्र ने बाज का रूप धारण किया और अग्रि ने कबूतर का। इस तरह वे उशीनर की यज्ञ शाला में पहुंचे।
तब बाज के डर से कबूतर अपनी रक्षा के लिए राजा की गोदी में जाकर छुप गया। तब बाज ने कहा राजन आप इस कबूतर को मुझे दे दीजिए। मैं भूख से मर रहा हूं। यह कबूतर मेरा आहार है। आप धर्म के लोभ से मेरा आहार ना छिने। तब राजा ने कहा यह मेरी शरण में आया है। इसने जान बचाने के लिए मेरा आश्रय लिया है। इसे तुम्हारे चंगुल में न पडऩे दूं तो यह अधर्म है। तब बाज बोला सब प्राणी आहार से ही उत्पन्न होते हैं। मैंने बहुत दिनों से भोजन नहीं किया है। यदि आज आपने मुझे भोजन से वंचित किया तो मैं मर जाऊंगा। तब राजा ने कहा आप ठीक कह रहे हैं। आप अच्छी बाते कह रही हैं, क्योंकि आप साक्षात गरुड़ का रूप है। धर्म के मर्म को अच्छी तरह समझते हैं।
लेकिन मैं मेरी शरण में आए इस पक्षी को त्याग नहीं सकता। अगर आपक ो इस कबूतर पर स्नेह है तो इसी के बराबर अपना मांस कबूतर पर स्नेह है तो इसी के बराबर अपना मांस काटकर तराजू में रख दीजिए। जब वह तौल में इस कबूतर के बराबर हो जाए तो वहीं मुझे दे दीजिए। उसी से मेरी तृप्ति हो जाएगी। तब राजा ने अपना मांस काटकर तौलना आरंभ किया। यह देखकर बाज बोला मैं इन्द्र हूं और ये अग्रिदेव हैं। हम आपकी धर्मनिष्ठा की परीक्षा लेने आए थे।

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