बुधवार, 27 जुलाई 2011

जल्द छोड़ें बुरी आदत

रंगपुर में राज्यवर्धन नामक एक कारोबारी रहता था। उसका बुद्घिवर्धन नामक एक पुत्र भी था। राज्यवर्धन के पास यूं तो ईश्वर का दिया हुआ सब कुछ था लेकिन उसे एक दुख भी था। उसके बेटे में कई बुरी आदतें थीं। उसे मदिरा के साथ जुए की लत भी लग गई थी। धन की अधिकता के चलते उसकी तमाम बुरे लोगों से मित्रता हो गई थी जो उसके पैसे से मौज-मजा करते और साथ ही उसमें बुरी आदतें भी डाल रहे थे। इस संकट से निजात पाने के लिए राज्यवर्धन ने राज्य के एक विद्वान से मदद करने का आग्रह किया। वह सज्जन राज्यवर्धन के घर आए और उसके बेटे से मिले। थोड़ी बहुत बातचीत के बाद वह बुद्घिवर्धन के साथ उसके खूबसूरत बगीचे की सैर पर निकल गए। वहां उन्होंने यूं ही छोटी घास की पत्तियों की ओर इशारा कर बुद्घिवर्धन से उन्हें नोचने के लिए कहा।
वह मुस्कराया और उसने उस नन्हे पौधे को दो अंगुलियों और अपने अंगूठे से पकड़कर आसानी से उखाड़ फेंका। फिर उन्होंने उससे थोड़े बड़े पौधे को उखाड़ने को कहा। इस बार बुद्घिवर्धन को थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी, लेकिन पौधा उखड़ गया। इसके बाद बुजुर्ग सज्जन ने एक वृक्ष की ओर इशारा किया। बुद्घिवर्धन को हैरानी हो रही थी कि आखिर ये सज्जन इन पौधों के पीछे क्यों पड़े हुए हैं। बहरहाल तमाम कोशिशों के बाद भी भला एक आदमी से पेड़ क्या उखड़ता? पसीना-पसीना हो चुके बुद्घिवर्धन ने आखिरकार अपने हाथ खड़े कर दिए और कहा - यह असंभव है। अब मुस्कराने की बारी बुजुर्ग सज्जन की थी। उन्होंने कहा - बेटे बुद्घिवर्धन बुरी आदतों के साथ भी बिल्कुल ऐसा ही है। अगर उन्हें शुरुआत में ही सुधार लिया जाए तो वे आसानी से दूर हो जाती हैं लेकिन जैसे-जैसे वे पुरानी हो जाती हैं ऐसा करना मुश्किल हो जाता है।

सबक
बुरी आदतों से जितना जल्द पीछा छुड़ाएंगे उतनी ही आसानी होगी। क्योंकि पुरानी आदतें जल्द नहीं जातीं। समय रहते संभलना जरूरी है अन्यथा कहीं इतनी देर न हो जाए कि घातक परिणामों का सामना करना पड़े। www.bhaskar.com

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