शनिवार, 23 जुलाई 2011

...और वे बुढ़े से हो गए जवान

यह बात सुनकर राजा शर्याति ने बिना विचारे च्यवन ऋषि को अपनी कन्या दे दी। उस कन्या को पाकर च्यवन मुनि प्रसन्न हो गए। सती सुकन्या भी अपने तप के नियमों का पालन करते हुए। प्रेमपूर्वक तपस्वी की परिचर्चा करने लगे। एक दिन सुकन्या स्नान करके अपने आश्रम में खड़ी थी। उस समय उस पर अश्विनी कुमारों की दृष्टी पड़ी। वह साक्षात देवराज की कन्या के समान अंगो वाली थी। तब अश्चिनीकुमारों ने उसके समीप जाकर कहा तुम किसकी पुत्री हो और किसकी पत्नी हो इस वन में क्या करती हो?

यह सुनकर सुकन्या ने सहज भाव से कहा मैं महाराज शर्याति की कन्या और महर्षि च्यवन की पत्नी हूं। तब अश्विनी कुमार बोले हम देवताओं के वैद्य हैं तुम्हारे पति को युवा और रूपवान कर सकते हैं। यह बात अपने पति से जाकर कहो उनकी यह बात उनकी पत्नी ने जाकर उन्हें बताई। मुनि ने अपनी स्वीकृति दे दी। तब उसने अश्विनी कुमारों से वैसा करने के लिए कहा अश्विनीकुमारों ने कहा मुनि इस सरोवर में प्रवेश करें। महर्षि च्यवन रूपवान होने को उत्सुक थे। उन्होंने तुरंत जल में प्रवेश किया। उनके साथ अश्विनीकुमारों ने भी उनमें गोता लगाया। फिर एक मुहूर्त बीतने पर वे तीनों उस सरोवर से बाहर निकले तो वे सभी युवा, दिव्यरूपधारी आकृति वाले थे। उन तीनों को ही देखकर अनुराग में वृद्धि होती थी।

उन तीनों ने ही कहा सुन्दरि हम तीनों में से एक को वर लो। सुकन्या एक बार तो सहम गई उसके मन से निश्चय करके उसने अपने पति को पहचान लिया। इस प्रकार अपनी पत्नी और मनमाना रूप व यौवन पाकर च्यवन मुनि बहुत प्रसन्न हुए। अश्चिनीकुमारों से बोले में वृद्ध था, तुमने मुझे रूप और यौवन दिया है। इसलिए मैं भी तुम्हे सौमपान का अधिकार दिलवाऊंगा। यह सुनकर अश्विनी कुमार प्रसन्न होकर स्वर्ग को चले गए। च्यवन और सुकन्या आश्रम में देवताओं के समान विहार करने लगे।

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