शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

भागवत ३२४

यह बात सिर्फ बुद्धिमान लोग ही समझते हैं....
ब्रम्ह सत्य है, ब्रम्ह आनन्द प्रदायक है और वह मोहक श्रेष्ठतम सुन्दर है। इसीलिए उसे सत्यम, शिवम् एवं सुन्दरम् कहा जाता है।
भगवत् गीता में-''परम ब्रम्ह अक्षर है, उसका स्वभाव अध्यात्म कहलाता है-भूतों के भाव को उत्पन्न करने वाला भूत-भाव और सृष्टि एवं संहार कर्म है।
और यही ब्रम्ह ''तपसा चीयते ब्रम्ह, तस्य ज्ञान मयं तप: मुण्डकोपनिशद 1, 1, 4-9 अर्थात् ब्रम्ह तप द्वारा निर्गुण से सगुण हो गया। चीयते का अर्थ फलना-फूलना है। यह अध्यात्म भाव है। यह आत्मज्ञान प्राधान है।
आइये जानते हैं भागवत में भगवान को उठाने के लिए श्रुतियां क्या कहती हैं। श्रुतियां कहती हैं-भगवान! आप ही सर्वश्रेष्ठ हैं, आप पर कोई विजय नहीं प्राप्त कर सकता। आपकी जय हो, जय हो। प्रभो! आप स्वभाव से ही समस्त ऐश्वर्यों से पूर्ण हैं, इसलिए चराचर प्राणियों को फंसाने वाली माया का नाश कर दीजिए। जगत में जितनी भी साधना, ज्ञान, क्रिया आदि शक्तियां हैं उन सबको जगाने वाले आप ही हैं। इसलिए आपके बिना यह माया मिट नहीं सकती।
जिस समय यह सारा जगत् नहीं रहता, उस समय भी बाप बचे रहते हैं। जैसे घट, मिट्टी का प्याला, कसोरा आदि सभी विकार मिट्टी से ही उत्पन्न और उसी में लीन होते हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति और प्रलय आप में ही होती है।मनुष्य अपना पैर चाहे कहीं भी रखे-ईंट, पत्थर या काठ पर, होगा वह पृथ्वी पर ही, क्योंकि वे सब पृथ्वी स्वरूप ही हैं। इसलिए हम चाहे जिस नाम या जिस रूप का वर्णन करें, वह आपका ही नाम, आपका ही रूप है।
लोग सत्व, रज, तम-इन तीन गुणों की माया से बने हुए अच्छे-बुरे भावों या अच्छी-बुरी क्रियाओं में उलझ जाया करते हैं, परन्तु आप तो उस माया नदी के स्वामी, उसके नचाने वाले हैं।भगवन प्राणधारियों के जीवन की सफलता इसी में है कि वे आपका भजन-सेवन करें, आपकी आज्ञा का पालन करें, यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनका जीवन व्यर्थ है और उनके शरीर में श्वास का चलना ठीक वैसा ही है, जैसा लुहार की धौंकनी में हवा का आना-जाना।
भगवन आप अनादि और अनन्त हैं। जिसका जन्म और मृत्यु काल से सीमित है, वह भला, आपको कैसे जान सकता है। जो लोग यह समझते हैं कि आप समस्त प्राणियों और पदार्थों के अधिष्ठान हैं, सबके आधार हैं और सर्वात्मभाव से आपका भजन-सेवन करते हैं, वे मृत्यु को तुच्छ समझकर उसके सिर पर लात मारते हैं अर्थात् उस पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। जो लोग आपसे विमुख हैं, वे चाहे जितने बड़े विद्वान् हों, उन्हें आप कर्मों का प्रतिपादन करने वाली श्रुतियों से पशुओं के समान बांध लेते हैं।
इसके विपरीत जिन्होंने आपके साथ प्रेम का बन्धन जोड़ रखा है, वे न केवल अपने को बल्कि दूसरों को भी पवित्र कर देते हैं, जगत् के बन्धन से छुड़ा देते हैं। ऐसा सौभाग्य भला, आपसे विमुख लोगों को कैसे प्राप्त हो सकता है।श्रुतियां कह रही हैं-भगवन सभी जीव आपकी माया से भ्रम में भटक रहे हैं, अपने को आपसे पृथक मानकर जन्म-मृत्यु का चक्कर काट रहे हैं, परन्तु बुद्धिमान् पुरुष इस भ्रम को समझ लेते हैं और सम्पूर्ण भक्तिभाव से आपकी शरण ग्रहण करते हैं, क्योंकि आप जन्म-मृत्यु के चक्कर से छुड़ाने वाले हैं।
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