शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

बड़ा बनने के लिए क्या जरूरी है?

अष्टावक्र की आयु बारह वर्ष की थी। एक बार वह उद्दालक की गोद में बैठा था। उसी समय श्रुतकेतु आये और उन्होंने पिता की गोद से अष्टावक्र को खींचा और कहा यह गोदी तेरे पिता की नहीं हैं। श्वेतकेतु की यह बात सुनकर अष्टावक्र को बहुत दुख हुआ।
उसने घर जाकर अपनी माता से पूछा मां मेरे पिता कहा गए हैं। इससे सुजाता को बहुत भय हुआ और उसने शाप के डर से सब बात बता दी। यह सब रहस्य सुनकर उन्होंने श्वेतकेतु से मिलकर यह सलाह की कि हम दोनों राजा जनक के यज्ञ में चलें। मैंने सुना है वह यज्ञ बहुत विचित्र है। वहां हम ब्राह्मणों के बड़े-बड़े शास्त्रार्थ सुनेंगे। ऐसी सलाह करके वे दोनों मामा-भानजे राजा जनक के समृद्धि सम्पन्न यज्ञ के लिए चल दिए। यज्ञशाला के दरवाजे पर पहुंचकर वे भीतर जाने लगे तो द्वारपाल ने कहा आप लोगों को प्रणाम है। राजा के आदेशनुसार हमारा निवेदन है उस पर ध्यान दें। इस यज्ञशला में बालकों को जाने की आज्ञा नहीं है, केवल वृद्ध और विद्वान ब्राह्मण ही इसमें प्रवेश कर सकते हैं।
तब अष्टावक्र ने द्वारपाल मनुष्य अधिक सालों की उम्र होने से, बाल पक जाने से या धन से बड़ा नहीं माना जाता। ब्राह्मण तो वही बड़ा है जो वेदों का वक्ता हो। ऋषियों ने ऐसा नियम बताया है। चाहो तो किसी भी विद्वान के साथ मुझसे शास्त्रार्थ करवा लो मैं उसे हराकर दिखाऊंगा। द्वारपाल बोला ठीक है मैं तुम्हे ले चलता हूं पर वहां जाकर तुम्हे विद्वान जैसा काम करके दिखाना होगा।
ऐसा कहकर द्वारपाल उन्हें राजा के पास ले गया। तब अष्टावक्र ने कहा राजन मैंने सुना है आपके यहां एक बंदी है। जो ब्राह्मणों को शास्त्रार्थ में पराजित कर देता है। वह बंदी कहा है मैं उससे मिलूंगा।तब राजा ने कहा आज तक कई लोग मेरे पास ये विचार लेकर आए पर उसे कोई नहीं हरा सका। उसके बाद बंदी और अष्टावक्र के बीच शास्त्रार्थ करवाया गया जिसमे अष्टावक्र विजय हुआ।

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