शनिवार, 31 मार्च 2012

भागवत ३३८ से ३४०


गांधारी ने भगवान कृष्ण को क्यों और क्या शाप दिया?
कृष्णजी ने गांधारी के पैर को स्पर्श किया गांधारी बोलीं दूर हटो तुम्हारे कारण आज मेरा वंश समाप्त हो गया। कृष्ण मैं तुमसे बहुत क्रोधित हूं, मैं तुम्हें शाप देना चाहती हूं। मैं जानती हूं तुम्हारी प्रतिभा और प्रभाव को। तुम चाहते तो यह युद्ध रोक सकते थे। यह युद्ध तुमने करवाया। मेरे बेटों ने नहीं लड़ा, तुमने लड़वाया है। तुमने मेरा वंश नाश कर दिया। तुम चाहते तो अपने तर्क से, अपने ज्ञान से, अपनी समझाईश, अपनी प्रभाव से, अपने पौरूष से इस युद्ध को रोक सकते थे। तुमने अच्छा नहीं किया, एक मां से सौ बेटे छीने हैं। गांधारी रोते-रोते कहती है- कृष्ण सुनो! जैसा मेरा भरापूरा कुल समाप्त हो गया, ऐसे ही तुम्हारा वंश तुम्हारे ही सामने समाप्त होगाऔर तुम देखोगे इसे।

इसके बाद गांधारी यहीं नहीं रूकती, बड़े क्रोध और आवेश में बोलती है कि आज हम दोनों कितने अकेले हो गए हैं। देखो तो इस महल में कोई नहीं है। जिस महल में इंसान ही इंसान हुआ करते थे, मेरे बच्चे, मेरे परिवार के सदस्य मेरे पास थे कितने अकेले हो गए हैं आज हम। तुम्हारे जीवन का जब अंतकाल आएगा तुम संसार में सबसे अकेले पड़ जाओगे। तुम्हे मरता हुआ कोई देख भी नहीं पाएगा जो शाप है तुमको।भगवान तो भगवान हैं, प्रणाम किया और कहते हैं मां गांधारी मुझे आपसे इसी आशीर्वाद की प्रतीक्षा थी। मैं आपके शाप को ग्रहण करता हूं मस्तक पर।

आपका शुभ हो, आपने बड़ी दया की है। कृष्ण पलटे तब तक गांधारी को ग्लानि हुई। कृष्ण पलटे और पांडवों ने देखा कृष्णजी के चेहरे पर शापित होने का कोई भाव ही नहीं था। भगवान मुस्कुराए और पांडवों से कहा- चलो। बड़ा अजीब लगा। भगवान अर्जुन के कंधे पर हाथ रखकर कहते हैं अर्जुन लीला तो देखो मेरे यदुवंश को यह वरदान था कि उन्हें कोई दूसरा नहीं मार सकेगा, मरेंगे तो आपस में ही मरेंगे। देखो इस वृद्धा ने शाप दे दिया तो यह व्यवस्था भी हो गई।

कृष्ण का है ये फंडा, जीना है तो जीओ ऐसे
भगवान ने कहा अर्जुन मेरी मृत्यु के लिए जो कुछ भी उसने कहा है मुझे स्वीकार है। कोई तो माध्यम होगा और भगवान मुस्कुराते हुए पांडव से कहते है चलो आज वही भगवान अपने दाएं पैर को बाएं पैर पर रखकर अपनी गर्दन को वृक्ष से टिकाकर बैठे प्रतीक्षा कर रहे थे अपनी मृत्यु की।जिसने मृत्यु का इतना बड़ा महायज्ञ किया था महाभारत वह ऋषि देखते ही देखते इस संसार से चला गया। यूं चले जाएंगे ऐसा भरोसा नहीं था। एक महान अभियान का महानायक यूं छोड़कर चला गया कृष्ण एक बात कहा करते थे कि जब मैं संसार से जाऊं तो कोई रोना मत।

कृष्ण को रोना पसंद नही। कृष्ण कहते हैं रूदन मत करिए आंसू बड़ी कीमती चीज है। मुझे आंसू का अभिषेक तो अच्छा लगता है पर रोना हो तो मेरे लिए रोओ, मुझे पाने के लिए रोओ। मेरी देह पर मत रोओ, यह निष्प्राण देह पर भगवान ने कहा था कि मेरे अंतिम समय में रोना मत, क्योंकि कृष्ण का एक सिद्धांत था मैं जीवनभर खुश रहा हूं और मैंने जीवनभर लोगों को खुश रखा है। इसलिए रोना मत, दु:खी मत होना।
कृष्ण तो भगवान थे, फिर गांधारी का शाप उन्हें क्यों लग गया?
पीताम्बर वो था, जिसने अनेक लोगों की लज्जा बचाई, जिनसे इतने लोग सुरक्षित हुए, जो पीताम्बर द्रौपदी के ऊपर ओढ़ाया गया था, जिस पीताम्बर ने लोगों को ममता का आश्वासन दिया, जिस पीताम्बर में लोगों ने छिप-छिपकर पता नहीं क्या-क्या कर लिया था वह पीताम्बर आज रक्त रंजित हो गया था।

उसका रंग पहचान में नहीं आ रहा था। चारों ओर रक्त बिखरा पड़ा है। भगवान कहते हैं यहां का रक्त यहीं छोड़कर जा रहा हूं।भगवान ने अपने स्वधाम गमन से संदेश दिया कि जाना सभी को है। जिसका भी जन्म हुआ है उसकी मृत्यु होगी ही। जन्म और मृत्यु तय है। सारा खेल बीच का है। हम इस बात को समझ लें कि जिसकी मृत्यु दिव्य है समझ लो उसी ने जीवन का अर्थ समझा है।

शुकदेवजी परीक्षित को समझा रहे हैं और अब धीरे-धीरे कथा ग्यारहवें स्कंध के समापन की ओर जा रही है।शुकदेवजी कहते हैं-राजा परीक्षित्! दारुक के चले जाने पर ब्रह्माजी, शिव-पार्वती, इन्द्रादि लोकपाल, मरीचि आदि प्रजापति, बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, पितर-सिद्ध, गन्धर्व-विद्याधर, नाग-चारण, यक्ष-राक्षस, किन्नर-अप्सराएं तथा गरुडलोक के विभिन्न पक्षी अथवा मैत्रेय आदि ब्राह्मण भगवान श्रीकृष्ण के परमधाम प्रस्थान को देखने के लिए बड़ी उत्सुकता से वहां आए थे।

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