रविवार, 1 अप्रैल 2012

जानिए डिम्पल कपाडिया को

डिम्पल कापडिया: युवाओं की सपनों की रानी
डिम्पल कापडिया का जीवन किसी रोचक फिल्म स्क्रिप्ट से कम नहीं है। 16 वर्ष की उम्र में देश के सबसे बड़े फिल्मकार द्वारा साइन किया जाना। पहली फिल्म का ब्लॉकबस्टर होना। रातों-रात युवाओं की सपनों की रानी हो जाना। अचानक फिल्मों को अलविदा कह कर देश के सुपरस्टार से शादी रचा लेना। फिर बच्चे, पति से मनमुटाव, बारह वर्ष बाद फिल्मों में सफल वापसी, प्रसिद्धी और पुरस्कार। डिम्पल के जीवन के इस सफर में कई अच्छे और बुरे उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं।
1970 में शो-मैन राज कपूर की महत्वाकांक्षी फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ टिकट खिड़की पर असफल रही। वितरकों सहित राज कपूर को भारी घाटा हुआ। इसकी भरपाई के लिए राज कपूर ने एक विशुद्ध कमर्शियल फिल्म बनाने की सोची और ‘बॉबी’ का जन्म हुआ। राज कपूर ने अपने बेटे ऋषि कपूर की नायिका डिम्पल कापड़िया को बनाया।

स्क्रीन टेस्ट के जरिये डिम्पल को जब चुना गया तब वे लगभग पन्द्रह वर्ष की थी। इतने कम उम्र के हीरो-हीरोइनों को लेकर प्रेम कहानी बनाना उस दौर में एक अनोखी बात थी। किशोर अवस्था के प्रेम को राज कपूर ने परदे पर इतनी त्रीवता के साथ पेश किया कि दर्शक बॉबी के दीवाने हो गए। पूरी फिल्म डिम्पल के इर्दगिर्द घूमती है।
डिम्पल ने वही किया जैसा निर्देशक ने उन्हें बताया। अल्हड़ डिम्पल ने नैसर्गिक अभिनय किया। तंग और छोटी ड्रेसेस पहनने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं हुआ। परदे पर इस तरह की प्रेम कथा पहले कभी नहीं आई थी और युवा मन पर बॉबी का गहरा असर हुआ।
डिम्पल का फिल्मी करियर दो भागों में बंटा हुआ है। एक हिस्से में बॉबी है तो दूसरे में शेष फिल्में। एक बॉबी ही उनकी तमाम फिल्मों पर भारी पड़ती है और बॉबी वाली छवि को तोड़ना डिम्पल के लिए बेहद मुश्किल रहा है। उनकी पहली और दूसरी फिल्म की रिलीज में बारह वर्ष का अंतर है क्योंकि ग्लैमर वर्ल्ड को छोड़ वे गृहस्थ जीवन में आ गई थीं।
1983 में डिम्पल ने पति राजेश खन्ना का घर छोड़ दिया। बॉबी रिलीज हुए दस साल हो गए थे, लेकिन कई फिल्मकारों का मानना था कि उनकी इस छवि को भुनाया जा सकता है। डिम्पल पहले से और ज्यादा सुंदर नजर आने लगी थीं। राज कपूर उस वक्त ‘राम तेरी गंगा मैली’ के लिए नायिका ढूंढ रहे थे। डिम्पल का उन्होंने स्क्रीन टेस्ट भी लिया, लेकिन उन्हें लगा कि डिम्पल उस भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पाएंगी।
दरअसल डिम्पल उस समय बुरे दौर से गुजर रही थीं। राजेश से ब्रेक-अप, साथ में दो छोटी बच्चियां, उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था। उनका आत्मविश्वास हिल चुका था। ‘सागर’ के लिए जब रमेश सिप्पी ने डिम्पल का स्क्रीन टेस्ट लिया तो वे बुरी तरह कांप रही थीं। डिम्पल को लगा कि यह फिल्म भी उनके हाथ से निकल जाएगी, लेकिन तमाम सलाह के खिलाफ जाते हुए रमेश सिप्पी ने डिम्पल को साइन किया और फिल्मों में उनकी वापसी हुई।
हैरत की बात यह थी कि डिम्पल की वापसी को लेकर तरह-तरह के सवाल खड़े किए गए थे कि दो बच्चों की मां को हीरोइन के रूप में कौन स्वीकारेगा? क्या वे बॉबी जैसा जादू जगा पाएंगी? तो दूसरी ओर उन्हें साइन करने के लिए निर्माताओं की लाइन भी लगी थी। शोले के निर्देशक द्वारा साइन किए जाने से डिम्पल में निर्माताओं का विश्वास जागा। सागर के रिलीज होने के पहले उनकी इक्का-दुक्का फिल्म रिलीज होकर पिट गईं, लेकिन सागर में मोना के किरदार में उनकी खूबसूरती और अभिनय को काफी सराहा गया।
सागर को उम्मीद के मुताबिक सफलता तो नहीं मिली, लेकिन डिम्पल की वापसी को सफल माना गया। असुरक्षित डिम्पल को जो भी फिल्में मिली वे साइन करती गईं और बच्चों को लेकर एक सेट से दूसरे सेट भागती रहीं।
एक और डिम्पल ने जख्मी शेर, इंसानियत के दुश्मन, मेरा शिकार, महावीरा, जख्मी औरत, साजिश जैसी घटिया फिल्में कीं तो दूसरी ओर ऐतबार, लावा, काश, कब्जा, इंसाफ जैसी फिल्मों के जरिये साबित किया कि मौका मिलने पर वे अच्छा अभिनय भी कर सकती हैं।
डिम्पल का इस बारे में कहना है कि उस दौर में ज्यादातर फिल्में ऐसी बनती थीं जिनमें हीरोइन के हिस्से में चंद दृश्य आते थे। साथ ही उनकी पोजीशन ऐसी नहीं थी कि वे फिल्में चूज़ करें लिहाजा उन्हें सभी तरह की फिल्में करना पड़ी। अब डिम्पल उन फिल्मों को देख हंसती हैं।
कुछ फिल्म निर्देशकों का कहना है कि डिम्पल का खूबसूरत चेहरा ही उनके करियर में बाधा बना। इस चेहरे की वजह से उन्हें ग्लैमरस रोल ही मिलें जबकि वे अपनी खूबसूरती के मुकाबले कहीं ज्यादा प्रतिभाशाली हैं। कुछ वर्षों बाद डिम्पल ने समानांतर फिल्मों में रूचि दिखाई और उन्होंने दृष्टि, प्रहार, लेकिन, रूदाली जैसी फिल्में की जिनमें उनकी अभिनय प्रतिभा निखर कर सामने आई। मृणाल सेन के साथ उन्होंने बंगला फिल्म अंतरीन की और मृणाल दा ने डिम्पल की तुलना सोफिया लारां से की। रूदाली के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।

शादी ने की शांति भंग
डिम्पल की पर्सनल लाइफ काफी उथल-पुथल भरी रही। चांदनी रात में समुंदर के किनारे चहलकदमी करते हुए राजेश खन्ना ने डिम्पल को प्रपोज कर दिया। कहा जाता है उस समय डिम्पल अपने पहले को-स्टार ऋषि कपूर की तरफ आकर्षित थी, लेकिन सुपरस्टार के अचानक मिले शादी के प्रस्ताव को वे ठुकरा नहीं सकी। राजेश का आकर्षण इतना था कि उन्हें अपने सुनहरे करियर की चमक भी फीकी लगी।
डिम्पल-राजेश की शादी की फिल्म देश भर के सिनेमाघरों में दिखाई गई। डिम्पल और राजेश के रिश्ते ज्यादा दिनों तक मधुर नहीं रहे। डिम्पल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि उनकी शांति तभी भंग हो गई थी जिस दिन उन्होंने शादी की थी।
राजेश और डिम्पल के बीच पटरी नहीं बैठने को लेकर पत्र -पत्रिकाओं ने खूब स्याही खर्च की गई। दोनों के बीच पन्द्रह वर्ष की उम्र का अंतर, डिम्पल पर फिल्म ना करने की पाबंदी, राजेश खन्ना का असफलता के कारण चिडचिड़ा हो जाना जैसे अनेक कारण गिनाए गए।
राजेश से अलग होने के बाद डिम्पल ने फिल्मों में अपना स्थान फिर से बनाया। दूर रहने के कारण पति-पत्नी के बीच तनाव कम हुआ और वे मिलने-जुलने लगे। राजेश ने अपनी फिल्म ‘जय शिव शंकर’ में डिम्पल को नायिका के रूप में भी लिया, हालांकि ये फिल्म अधूरी रह गई। डिम्पल ने राजेश का चुनाव प्रचार किया। पिछले दिनों जब राजेश खन्ना बीमार हुए तो डिम्पल ने उनकी देखभाल की। हालांकि सनी देओल से डिम्पल की नजदीकियों को लेकर भी काफी बातें हुईं।
जब नायिका बनने की उम्र निकल गई तो डिम्पल ने कैरेक्टर आर्टिस्ट के रूप में दिल चाहता है, प्यार में ट्विस्ट, बीइंग साइसर, बनारस और दबंग जैसी फिल्में की। आज भी डिम्पल को फिल्मों के ऑफर मिलते हैं, लेकिन वे ट्विंकल के बेटे अराव के साथ समय गुजारना ज्यादा पसंद करती हैं। वे कहती हैं कि मैं बहुत आलसी और मूडी हूं इसलिए कई अच्छे मौके मेरे हाथ से निकल गए। डिम्पल की दोनों बेटियां ट्विंकल और रिंकी शादी कर लाइफ में सैटल हो चुकी हैं। डिम्पल 54 वर्ष की हो चुकी हैं, लेकिन अभी भी उन्हें बॉबी गर्ल के रूप में याद किया जाता है।
प्रमुख फिल्में
बॉबी (1973), ऐतबार (1985), सागर (1985), जांबाज (1986), काश (1987), जख्मी औरत (1988), बीस साल बाद (1989), दृष्टि (1991), प्रहार (1991), लेकिन (1991), रूदाली (1992), गर्दिश (1993), क्रांतवीर (1994), दिल चाहता है (2001), प्यार में ट्विस्ट (2005), बीइंग साइरस (2006), बनारस (2006), दबंग (2010)

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