श्रीकृष्ण ने कहा कौरव और पांडवों के मिल जाने से आप समस्त लोकों का आधिपत्य प्राप्त कर सकेंगे। महाराज युद्ध करने में मुझे बहुत संहार दिखाई दे रहा है। इस प्रकार दोनों पक्षों का नाश कराने में आपको क्या धर्म दिखाई देता है। आप इस लोक की रक्षा कीजिए और ऐसा कीजिए, जिसमें आपकी प्रजा का नाश न हो। यदि आप सत्वगुण धारण कर लेंगे तो सबकी रक्षा हो जाएगी कृष्णजी ने आगे कहा मैं अब आपको पांडवों का संदेश सुनाता हूं। महाराज!पाण्डवों ने आपको प्रणाम कहा है और आपकी प्रसन्नता चाहते हुए, यह प्रार्थना की है कि हमने अपने साथियों के सहित आपकी आज्ञा से ही इतने दिनों तक दुख भोगा है। हम बाहर वर्ष तक वन में रहे हैं और फिर तेहरवां वर्ष जनसमूह में अज्ञातरूप से रहकर बिताया है।
वनवास की शर्त होने के समय हमारा यही निश्चय था कि जब हम लौटेंगे तो आप हमारे ऊपर पिता की तरह रहेंगे। हमने उस शर्त का पूरी पालन किया है, इसलिए अब आप भी जैसा वादा था, वैसा ही निभाइए। हमें अब अपने राज्य का भाग मिल जाना चाहिए। आप धर्म और अर्थ का स्वरूप जानते हैं। इसलिए आपको हमारी रक्षा करनी चाहिए। गुरु के प्रति शिष्य का जैसा गौरवयुक्त व्यवहार होना चाहिए।
आपके साथ हमारा वैसा ही बर्ताव है। इसलिए आप भी हमारे प्रति गुरु का सा आचरण कीजिए। हम लोग यदि मार्गभ्रष्ट हो रहे हैं तो आप हमें ठीक रास्ते पर लाइए और खुद भी सन्मार्ग पर स्थित हो जाइए। इसके अलावा आपके उन पुत्रों ने सभासद् से कहलाया है कि जहां धर्मज्ञ सभासद् हों, वहां कोई अनुचित बात नहीं होनी चाहिए। यदि सभासदो के देखते हुए अधर्म से धर्म का और असत्य से सत्य का नाश हो तो उनका भी नाश हो जाता है। इस समय पांडव लोग धर्म पर दृष्टि लगाए बैठे हैं। उन्होंने धर्म के अनुसार सत्य और न्याययुक्त बात ही कही है। राजन् आप पाण्डवों को राज्य दे दीजिए- इसके सिवा आपसे और क्या कहा जा सकता है? इस सभा में जो राजालोग बैठे हैं। उन्हें कोई और बात कहनी हो तो कहें। यदि धर्म और अर्थ का विचार करके मैं सच्ची बात कहूं तो यही कहना होगा कि इन क्षत्रियों को आप मृत्यु के फंदे से छुड़ा दीजिए। ऐसा करके आप अपने पुत्रों के सहित आनन्द से भोग भोगिए।
इस समय आपने अर्थ को अनर्थ और अनर्थ को अर्थ मान रखा है। आपके पुत्रों पर लोभ ने अधिकार जमा रखा है।पाण्डव तो आपकी सेवा के लिए भी तैयार है। युद्ध करने के लिए भी तैयार हैं इन दिनों में आपको जो बात अधिक हितकर जान पड़े, उसी पर डट जाइए। जब भगवान कृष्ण ने ये सब बातें कहीं तो सभी सभासदों को रोमांच हो आया और वे चकित से हो गए। वे मन ही मन तरह से तरह से विचार करने लगे। उनके मुंह से कोई भी उत्तर नहीं निकला। सब राजाओं को इस प्रकार मौन हुआ देख सभा में उपस्थित परशुरामजी कहने लगे। तुम सब प्रकार का संदेह छोड़कर मेरी एक सत्य सुनो.
वनवास की शर्त होने के समय हमारा यही निश्चय था कि जब हम लौटेंगे तो आप हमारे ऊपर पिता की तरह रहेंगे। हमने उस शर्त का पूरी पालन किया है, इसलिए अब आप भी जैसा वादा था, वैसा ही निभाइए। हमें अब अपने राज्य का भाग मिल जाना चाहिए। आप धर्म और अर्थ का स्वरूप जानते हैं। इसलिए आपको हमारी रक्षा करनी चाहिए। गुरु के प्रति शिष्य का जैसा गौरवयुक्त व्यवहार होना चाहिए।
आपके साथ हमारा वैसा ही बर्ताव है। इसलिए आप भी हमारे प्रति गुरु का सा आचरण कीजिए। हम लोग यदि मार्गभ्रष्ट हो रहे हैं तो आप हमें ठीक रास्ते पर लाइए और खुद भी सन्मार्ग पर स्थित हो जाइए। इसके अलावा आपके उन पुत्रों ने सभासद् से कहलाया है कि जहां धर्मज्ञ सभासद् हों, वहां कोई अनुचित बात नहीं होनी चाहिए। यदि सभासदो के देखते हुए अधर्म से धर्म का और असत्य से सत्य का नाश हो तो उनका भी नाश हो जाता है। इस समय पांडव लोग धर्म पर दृष्टि लगाए बैठे हैं। उन्होंने धर्म के अनुसार सत्य और न्याययुक्त बात ही कही है। राजन् आप पाण्डवों को राज्य दे दीजिए- इसके सिवा आपसे और क्या कहा जा सकता है? इस सभा में जो राजालोग बैठे हैं। उन्हें कोई और बात कहनी हो तो कहें। यदि धर्म और अर्थ का विचार करके मैं सच्ची बात कहूं तो यही कहना होगा कि इन क्षत्रियों को आप मृत्यु के फंदे से छुड़ा दीजिए। ऐसा करके आप अपने पुत्रों के सहित आनन्द से भोग भोगिए।
इस समय आपने अर्थ को अनर्थ और अनर्थ को अर्थ मान रखा है। आपके पुत्रों पर लोभ ने अधिकार जमा रखा है।पाण्डव तो आपकी सेवा के लिए भी तैयार है। युद्ध करने के लिए भी तैयार हैं इन दिनों में आपको जो बात अधिक हितकर जान पड़े, उसी पर डट जाइए। जब भगवान कृष्ण ने ये सब बातें कहीं तो सभी सभासदों को रोमांच हो आया और वे चकित से हो गए। वे मन ही मन तरह से तरह से विचार करने लगे। उनके मुंह से कोई भी उत्तर नहीं निकला। सब राजाओं को इस प्रकार मौन हुआ देख सभा में उपस्थित परशुरामजी कहने लगे। तुम सब प्रकार का संदेह छोड़कर मेरी एक सत्य सुनो.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें