...नल, नील, द्विविद, सुग्रीव और अंगद हनुमान कहां हैं? यह सुनकर रीछ वानर सब भाग गए। सब युद्ध की इच्छा भूल गए। सारी सेना बेहाल हो गई। हनुमानजी ने गुस्से में आकर पहाड़ उखाड़ लिया। बड़े ही क्रोध के साथ उस पहाड़ को उन्होंने मेघनाद के ऊपर फेंक दिया। मेघनाद पहाड़ को आते देख आकाश में उड़ गया। मेघनाद रामजी के पास आ गया। उसने उन पर अस्त्र-शस्त्र और हथियार चलाए। रामजी ने उसके सारे अस्त्र व्यर्थ कर दिए
रामजी का ऐसा प्रभाव देखकर मेघनाद को बहुत आश्चर्य हुआ वह अनेकों तरह की लीलाएं करने लगा। वह ऊंचे स्थान पर चढ़कर अंगारे बरसाने लगा। उसकी माया देखकर सारे वानर सोचने लगे कि अब सबका मरण आ गया है। तब रामजी ने एक ही बाण से सारी माया काट डाली। श्रीरामजी से आज्ञा मांगकर वानर आदि हाथों में धनुष बाण लेकर लक्ष्मणजी के साथ आगे बड़े। रामचंद्रजी की जय-जयकार कर सारे वानरों ने राक्षसों पर हमला कर दिया। वानर उनकों घूंसों व लातों से मारते हैं। दांतों से काटते हैं।
लक्ष्मणजी ने एक बाण से रथ तोड़ डाला और सारथि के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। तब मेघनाद को लगा कि उसके प्राण संकट में आ गए। मेघनाद ने वीरघातिनी शक्ति चलाई। वह लक्ष्मणजी की छाती पर लगी। शक्ति के लगने से वे बेहोश हो गए। मेघनाद डर छोड़कर उनके पास गया। मेघनाद के समान सौ करोड़ योद्धा लक्ष्मणजी को उठाने का प्रयास करने लगे। लेकिन वे सभी मिलकर भी लक्ष्मणजी को वहां से न हटा पाए। हनुमान ने उन्हें उठाया और रामजी के पास ले आए। जाम्बवान ने कहा- लंका में सुषेण वैद्य रहता है, उसे ले आने के लिए किसे भेजा जाए।
हनुमान छोटा रूप धरकर गए और सुषेण को उसके घर सहित उठा लाए। सुषेण ने हनुमानजी को ओषधि ले आने को कहा। उधर एक गुप्तचर ने रावण को इस रहस्य की खबर दी। तब रावण कालनेमि के घर आया। रावण ने उसे अपना सारा दुख बताया। कालनेमि ने सारी बात सुनी और उसने कहा तुम्हारे देखते ही देखते उसने सारा नगर जला डाला, उसका रास्ता कौन रोक सकता है। उसने रावण को रामजी की भक्ति करने की सलाह दी। रावण यह सुनकर गुस्से में आ गया। तब कालनेमि ने मन ही मन विचार किया कि इस दुष्ट के हाथों मरने से अच्छा है मैं राम जी के हाथों मरूं। वह मन ही मन ऐसा सोचकर चल दिया। उसने मार्ग में माया रची उसने सुंदर तालाब, मंदिर और बगीचा बनाया। हनुमानजी ने सुंदर आश्रम देखकर सोचा कि मुनि से पूछकर जल पी लूं।
रामजी का ऐसा प्रभाव देखकर मेघनाद को बहुत आश्चर्य हुआ वह अनेकों तरह की लीलाएं करने लगा। वह ऊंचे स्थान पर चढ़कर अंगारे बरसाने लगा। उसकी माया देखकर सारे वानर सोचने लगे कि अब सबका मरण आ गया है। तब रामजी ने एक ही बाण से सारी माया काट डाली। श्रीरामजी से आज्ञा मांगकर वानर आदि हाथों में धनुष बाण लेकर लक्ष्मणजी के साथ आगे बड़े। रामचंद्रजी की जय-जयकार कर सारे वानरों ने राक्षसों पर हमला कर दिया। वानर उनकों घूंसों व लातों से मारते हैं। दांतों से काटते हैं।
लक्ष्मणजी ने एक बाण से रथ तोड़ डाला और सारथि के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। तब मेघनाद को लगा कि उसके प्राण संकट में आ गए। मेघनाद ने वीरघातिनी शक्ति चलाई। वह लक्ष्मणजी की छाती पर लगी। शक्ति के लगने से वे बेहोश हो गए। मेघनाद डर छोड़कर उनके पास गया। मेघनाद के समान सौ करोड़ योद्धा लक्ष्मणजी को उठाने का प्रयास करने लगे। लेकिन वे सभी मिलकर भी लक्ष्मणजी को वहां से न हटा पाए। हनुमान ने उन्हें उठाया और रामजी के पास ले आए। जाम्बवान ने कहा- लंका में सुषेण वैद्य रहता है, उसे ले आने के लिए किसे भेजा जाए।
हनुमान छोटा रूप धरकर गए और सुषेण को उसके घर सहित उठा लाए। सुषेण ने हनुमानजी को ओषधि ले आने को कहा। उधर एक गुप्तचर ने रावण को इस रहस्य की खबर दी। तब रावण कालनेमि के घर आया। रावण ने उसे अपना सारा दुख बताया। कालनेमि ने सारी बात सुनी और उसने कहा तुम्हारे देखते ही देखते उसने सारा नगर जला डाला, उसका रास्ता कौन रोक सकता है। उसने रावण को रामजी की भक्ति करने की सलाह दी। रावण यह सुनकर गुस्से में आ गया। तब कालनेमि ने मन ही मन विचार किया कि इस दुष्ट के हाथों मरने से अच्छा है मैं राम जी के हाथों मरूं। वह मन ही मन ऐसा सोचकर चल दिया। उसने मार्ग में माया रची उसने सुंदर तालाब, मंदिर और बगीचा बनाया। हनुमानजी ने सुंदर आश्रम देखकर सोचा कि मुनि से पूछकर जल पी लूं।
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