(लेखिका- अपेक्षा शर्मा)
दोस्ती एक ऐसा संबंध है जो मिलता तो हमें खून के रिश्तों के बाद है पर खून के रिश्तों से कम महत्वपूर्ण भी नहीं होता है। ये कुदरत का एक ऐसा नायाब तोहफा है जिसे हम अपनी पंसद नापसंद से बनाते है और निभाते हैं। किसी भी समाज से सरोकार रखने वाले मनुष्य के लिए 'रिश्ता' शब्द बड़ी अहमियत रखता है। हम परिवार में विभिन्न रिश्तों की डोर से बँधे होते हैं। लेकिन इन पारिवारिक रिश्तों के अलावा एक और महत्वपूर्ण रिश्ता हमारे जीवन में काफी महत्व रखता है और वह है दोस्ती अथवा मित्रता का रिश्ता, जो विश्वास व सहयोग के आधार पर टिका होता है। मित्र राजदार भी होते हैं और सुख-दुःख के साथी भी।
रिश्तों में जहां मर्यादा होती है वह रिश्ते की सीमा निश्चित कर देती है। रिश्तों में चाहे घुन का कीड़ा आ जाये वो एक सीमा में निभाने का हमारा कर्तव्य बन जाता है, पर दोस्ती में कोई सीमा नहीं होती । यह गंगा सी निर्मल और पवित्र होती है, दोस्त के सामने हम सब कुछ सच बोलते है क्योंकि वहा किसी मर्यादा, दिखावा या बड़प्पन का सवाल नहीं होता है। रिश्तों में अगर दोस्ती का रस डाल दिया जाये तो वह रिश्ता अति मधुर और मजबूत हो जाता है, जैसे उसके भाई, मित्र समान है, उसका पति मित्र समान है ये वाक्य जहां कहने-सुनने में अच्छे लगते है उससे कई गुना ज्यादा ये रिश्ते दृढ़ और कठोर होते हैं। एक सच्चा दोस्त आईने की भांति होता है जो हमें हमारी अच्छाई और बुराई दोनों से अवगत कराता है। जैसे भूखे से ज्यादा भोजन का स्वाद कोई और नहीं बता सकता ठीक उसी प्रकार सच्चे मित्र का परिचय संकट में फंसा इंसान ही जान सकता है। इसमें न कोई पैमाना निश्चित होता है और न ही यह "गिव एण्ड टेक पॉलिसी "पर आधारित होता है। यह ऐसा संबंध है जो समुद्र सा गहरा और अथाह सीमा लिए है। इसके उत्साह में अलग का दरिया हो या दलदल इंसान हंसते हुए पार कर सकता है। दोस्तो अभी तक मैंने जो लिखा वो एक सच्चे दोस्त के लिए है पर 21 वीं सदी के जिस पडाव पर आज युवा वर्ग जिसे मित्रता भ्रमित हो रहा है और उनके साथ आगे बढ़ता है वहां उसकी परिभाषा बदल सी गई है। आज हम अपने से उच्च वर्ग से मेलजोल रखकर उन्हें अपना मित्रा बताकर गर्व महसूस करते है उनसे मित्रता निभाने के लिए मुझे ही सैकड़ो झूठ बोलने पड़े पर हम वो सब करते है ऐसे लोग क्या कभी मित्र बन सकते है जिनकी मित्रता के लिए हम झूठ बोलते है। युवा वर्ग सोचता है कि ये सब हमे भविष्य में काम आएंगे पर वे तब तक ही काम आएंगे आते है जब तक हमारे कामजी महल उन्हें दिखते है और अगर मान भी ले कि जो हमारी मदद करते भी है तो भी मित्रता में कटुता आती ही है क्योंकि मित्रता की नीव में झूठ का खोखलापन है। एक सच्ची मित्रता में स्वार्थ, ईष्र्या और द्वेष नहीं होता है और ना ही न वह हमारा स्टेटस सिम्बल होती । दोस्ती में लोग रेलगाड़ी के अजनबी यात्री की तरह मिलते है कुछ ही क्षणो में दोस्ती भी हो जाती है तो वही कुछ से प्रगाड़ संबंध बन जाते है । बात तब बिगड़ती है जब दोनों तरफ से या एक तरफ से भावनाओं में स्वार्थ का प्रवेश होता है। किसी भी तरह की इच्छा रखने वाले हमारे अच्छे मित्र नहीं हो सकते और ना ही हम उनके। मित्रता की बुनियाद अनकंडिशनल होती है। जब किसी संबंध को रिश्ते की नाम नहीं दिया जा सकता तो उसे दोस्त कहते हैं। और स्वार्थ रिश्तों और दोस्ती में प्रवेश कर गया है। इसकी वजह से मित्र-मित्र का और भाई-भाई का शत्रु भी बन सकता है। मित्रों हमें आवश्यकता है अपने दिल की मित्रता को पहचानने की। यदि हम नजर उठाकर अपने चारो तरफ देखे तो हमें शायद एक भी मित्र ऐसा ना मिले जिसे हमसे या हमें उससे कोई स्वार्थ न हो और फिर भी हम आपस में मित्र हो, ऐसे में दोस्तों आवश्यकता है संबंधों को एक दायरे में रखने की और रिश्तों पर मित्रता की चासनी चढ़ाने की ,ताकि हमारे रिश्ते मजबूत बने रहे और दोस्ती भी एक मिसाल बने। * सच्चा मित्र वह है जो दर्पण की तरह तुम्हारे दोषों को तुम्हें दिखाए। जो तुम्हारे अवगुणों को गुण बताए वह तो खुशामदी है। * विदेश में विद्या मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगी का मित्र औषधि व मृतक का मित्र धर्म होता है। * मित्र वे दुर्लभ लोग होते हैं, जो हमारा हालचाल पूछते हैं और उत्तर सुनने को रुकते भी हैं। * ज्ञानवान मित्र ही जीवन का सबसे बड़ा वरदान है। * सच्चे मित्र हीरे की तरह कीमती और दुर्लभ होते हैं, झूठे दोस्त पतझड़ की पत्तियों की तरह हर कहीं मिल जाते हैं। * मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु हर स्थिति में अच्छा है। * मित्र पाने की राह है, खुद किसी का मित्र बन जाना। * मित्रता करने में धैर्य से काम लो। किंतु जब मित्रता कर ही लो तो उसे अचल और दृढ़ होकर निभाओ। * अपने मित्र को एकांत में नसीहत दो, लेकिन प्रशंसा (सही) खुलेआम करो। * तुम्हारा अपना व्यवहार ही शत्रु अथवा मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी है। लेखिका मस्कट ओमान में रहती है
रिश्तों में जहां मर्यादा होती है वह रिश्ते की सीमा निश्चित कर देती है। रिश्तों में चाहे घुन का कीड़ा आ जाये वो एक सीमा में निभाने का हमारा कर्तव्य बन जाता है, पर दोस्ती में कोई सीमा नहीं होती । यह गंगा सी निर्मल और पवित्र होती है, दोस्त के सामने हम सब कुछ सच बोलते है क्योंकि वहा किसी मर्यादा, दिखावा या बड़प्पन का सवाल नहीं होता है। रिश्तों में अगर दोस्ती का रस डाल दिया जाये तो वह रिश्ता अति मधुर और मजबूत हो जाता है, जैसे उसके भाई, मित्र समान है, उसका पति मित्र समान है ये वाक्य जहां कहने-सुनने में अच्छे लगते है उससे कई गुना ज्यादा ये रिश्ते दृढ़ और कठोर होते हैं। एक सच्चा दोस्त आईने की भांति होता है जो हमें हमारी अच्छाई और बुराई दोनों से अवगत कराता है। जैसे भूखे से ज्यादा भोजन का स्वाद कोई और नहीं बता सकता ठीक उसी प्रकार सच्चे मित्र का परिचय संकट में फंसा इंसान ही जान सकता है। इसमें न कोई पैमाना निश्चित होता है और न ही यह "गिव एण्ड टेक पॉलिसी "पर आधारित होता है। यह ऐसा संबंध है जो समुद्र सा गहरा और अथाह सीमा लिए है। इसके उत्साह में अलग का दरिया हो या दलदल इंसान हंसते हुए पार कर सकता है। दोस्तो अभी तक मैंने जो लिखा वो एक सच्चे दोस्त के लिए है पर 21 वीं सदी के जिस पडाव पर आज युवा वर्ग जिसे मित्रता भ्रमित हो रहा है और उनके साथ आगे बढ़ता है वहां उसकी परिभाषा बदल सी गई है। आज हम अपने से उच्च वर्ग से मेलजोल रखकर उन्हें अपना मित्रा बताकर गर्व महसूस करते है उनसे मित्रता निभाने के लिए मुझे ही सैकड़ो झूठ बोलने पड़े पर हम वो सब करते है ऐसे लोग क्या कभी मित्र बन सकते है जिनकी मित्रता के लिए हम झूठ बोलते है। युवा वर्ग सोचता है कि ये सब हमे भविष्य में काम आएंगे पर वे तब तक ही काम आएंगे आते है जब तक हमारे कामजी महल उन्हें दिखते है और अगर मान भी ले कि जो हमारी मदद करते भी है तो भी मित्रता में कटुता आती ही है क्योंकि मित्रता की नीव में झूठ का खोखलापन है। एक सच्ची मित्रता में स्वार्थ, ईष्र्या और द्वेष नहीं होता है और ना ही न वह हमारा स्टेटस सिम्बल होती । दोस्ती में लोग रेलगाड़ी के अजनबी यात्री की तरह मिलते है कुछ ही क्षणो में दोस्ती भी हो जाती है तो वही कुछ से प्रगाड़ संबंध बन जाते है । बात तब बिगड़ती है जब दोनों तरफ से या एक तरफ से भावनाओं में स्वार्थ का प्रवेश होता है। किसी भी तरह की इच्छा रखने वाले हमारे अच्छे मित्र नहीं हो सकते और ना ही हम उनके। मित्रता की बुनियाद अनकंडिशनल होती है। जब किसी संबंध को रिश्ते की नाम नहीं दिया जा सकता तो उसे दोस्त कहते हैं। और स्वार्थ रिश्तों और दोस्ती में प्रवेश कर गया है। इसकी वजह से मित्र-मित्र का और भाई-भाई का शत्रु भी बन सकता है। मित्रों हमें आवश्यकता है अपने दिल की मित्रता को पहचानने की। यदि हम नजर उठाकर अपने चारो तरफ देखे तो हमें शायद एक भी मित्र ऐसा ना मिले जिसे हमसे या हमें उससे कोई स्वार्थ न हो और फिर भी हम आपस में मित्र हो, ऐसे में दोस्तों आवश्यकता है संबंधों को एक दायरे में रखने की और रिश्तों पर मित्रता की चासनी चढ़ाने की ,ताकि हमारे रिश्ते मजबूत बने रहे और दोस्ती भी एक मिसाल बने। * सच्चा मित्र वह है जो दर्पण की तरह तुम्हारे दोषों को तुम्हें दिखाए। जो तुम्हारे अवगुणों को गुण बताए वह तो खुशामदी है। * विदेश में विद्या मित्र होती है, घर में पत्नी मित्र होती है, रोगी का मित्र औषधि व मृतक का मित्र धर्म होता है। * मित्र वे दुर्लभ लोग होते हैं, जो हमारा हालचाल पूछते हैं और उत्तर सुनने को रुकते भी हैं। * ज्ञानवान मित्र ही जीवन का सबसे बड़ा वरदान है। * सच्चे मित्र हीरे की तरह कीमती और दुर्लभ होते हैं, झूठे दोस्त पतझड़ की पत्तियों की तरह हर कहीं मिल जाते हैं। * मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु हर स्थिति में अच्छा है। * मित्र पाने की राह है, खुद किसी का मित्र बन जाना। * मित्रता करने में धैर्य से काम लो। किंतु जब मित्रता कर ही लो तो उसे अचल और दृढ़ होकर निभाओ। * अपने मित्र को एकांत में नसीहत दो, लेकिन प्रशंसा (सही) खुलेआम करो। * तुम्हारा अपना व्यवहार ही शत्रु अथवा मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी है। लेखिका मस्कट ओमान में रहती है
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