सिसकते, आंसू बहाते ही सही, लेकिन यमुना बहना चाहती है। उजाड़-वीरान खादरों में बेफिक्री से बहती यमुना मैया अपने 'बेटों' के बीच आते ही सहम जाती है। सीवर, गंदगी, नाले, कूड़ा-करकट से आजिज यमुना के लिए अब तो अपनी धार में भी रोड़े हैं। उसके घाटों पर कंक्रीट के जंगल बसते चले गए। कालिंदी अवैध इमारतों की नींव पर सिर पटकते रोए जा रही है। हाईकोर्ट व नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ये आंसू पोंछना भी चाहते हैं, लेकिन जिम्मेदार अफसर कुछ करने की बजाय 'नोटिस' नाम के कागज से मुंह छिपाए बैठे हैं।
मामला मथुरा का हो या ताजनगरी की कहानी, यमुना की हालत कहीं बदलती नजर नहीं आती। पावन यमुना की तरह ही पावन मथुरा-वृंदावन की भूमि पर भू-माफिया आश्रम व इमारतें बनाकर यमुना की तलहटी कब्जाने में लगे हैं, तो यमुना के लिए वैसी ही हिकारत मुहब्बत की नगरी आगरा में महसूस होती है। पिछले करीब एक दशक से अवैध निर्माणों की बाढ़ सी आई हुई है। आगरा विकास प्राधिकरण, जिला प्रशासन, नगर निगम व सिंचाई विभाग की मिलीभगत से कुछ बिल्डर लगातार यमुना की तलहटी, एहतमाली भूमि व डूब क्षेत्र पर कब्जा किए जा रहे हैं। आगरा शहर में खास तौर पर दयालबाग क्षेत्र से यमुना की तलहटी पर कब्जों की शुरुआत होती है। यहां बिल्डरों के बड़े-बड़े आवासीय प्रोजेक्ट हैं। इसी तरह जगनपुर, मनोहरपुर, बल्केश्वर, जीवनी मंडी तक कतार से दर्जनों अवैध निर्माण यमुना की तलहटी में हो गए। इनमें बड़े रसूखदार बिल्डरों के प्रोजेक्ट को तो खुद सिंचाई विभाग ने अनापत्ति प्रमाण पत्र दिए व आगरा विकास प्राधिकरण ने नक्शे पास कर दिए। वहीं, दर्जनों कॉलोनियों तो बिल्कुल अवैध बन गईं।
मुख्य सचिव के आदेश पचा गए अफसर
16 मार्च 2010 को तत्कालीन मुख्य सचिव ने आदेश जारी किए थे कि यमुना की तलहटी और डूब क्षेत्र में जितने भी अवैध निर्माण हैं, उन्हें चिन्हित किया जाए। सभी संबंधित विभाग उन पर कार्रवाई करे। पुलिस उन निर्माणकर्ताओं पर कार्रवाई करे। साथ ही, सुनिश्चित किया जाए कि यमुना के प्रतिबंधित क्षेत्र में कोई भी नक्शा पास न किया जाए। उसे हरित पट्टिका के रूप में विकसित किया जाए। इसके बाद भी किसी भी विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की।
एनजीटी के आदेश पर निर्माण चिन्हित, कार्रवाई शून्य:
जुलाई 2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश जारी किए कि यमुना डूब क्षेत्र में जितने भी निर्माण हैं, उन्हें चिन्हित कर कार्रवाई की जाए। इसके बाद आगरा विकास प्राधिकरण ने हरीपर्वत वार्ड प्रथम में पोइया से बल्केश्वर तक 34, हरीपर्वत वार्ड द्वितीय में पोइया से रुनकता तक 11 व छत्ता वार्ड में 12 निर्माण चिन्हित किए। सभी के चालान काट कर एनजीटी को जानकारी भेज दी गई, लेकिन कार्रवाई किसी भी निर्माण पर अब तक नहीं की गई।
मुनाफाखोरी में अपने ही नियम दफन:
इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश है कि यमुना के 500 मीटर के दायरे में कोई भी निर्माण नहीं होना चाहिए। वहीं, एडीए का खुद का नियम कहता है कि 200 मीटर के दायरे में कोई निर्माण अनुमन्य नहीं होगा। इसके बावजूद धड़ल्ले से यमुना की तलहटी पर नक्शे पास किए जा रहे हैं। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट मॉनीटरिंग कमेटी के सदस्य डीके जोशी व जिला प्रशासन के संयुक्त दौरे के बाद खुद प्रशासन ने रिपोर्ट में यमुना की तलहटी पर अवैध निर्माणों की रिपोर्ट दी थी। उसके बाद एडीए ने नोटिस जारी किए, लेकिन अब मामला फिर ठंडे बस्ते में पड़ा है।
'शहर में पहले तालाबों पर कब्जे किए गए। अब इस शहर के अफसर कुछ बिल्डरों के साथ मिल कर यमुना की जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं। हाईकोर्ट और एनजीटी के आदेशों का उल्लंघन कर यमुना की तलहटी कब्जा रहे हैं। ये कितने भी प्रभावशाली लोग हों, इन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में सभी को खड़ा किया जाएगा।'
'शहर में पहले तालाबों पर कब्जे किए गए। अब इस शहर के अफसर कुछ बिल्डरों के साथ मिल कर यमुना की जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं। हाईकोर्ट और एनजीटी के आदेशों का उल्लंघन कर यमुना की तलहटी कब्जा रहे हैं। ये कितने भी प्रभावशाली लोग हों, इन्हें छोड़ा नहीं जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में सभी को खड़ा किया जाएगा।'
दिल्ली में तो यमुना खत्म होकर गंदे नाले में बदल गई है। मथुरा में पहुंचने पर इसके प्रदूषित जल से अगर आचमन कर लिया जाए तो समझो राम नाम सत्य है। लोगों की लिप्सा और नासमझी यमुना को निगलते जा रही है। जागरुक कराता अच्छा आलेख …… आभार
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