कान्हा के 5240वें जन्मदिवस पर विशेष
भगवान श्रीकृष्ण का प्रत्येक रूप मनोहारी है। उनका बालस्वरूप तो इतना मनमोहक है कि वह बचपन का एक आदर्श बन गया है। इसीलिए जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के इसी रूप की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें वे चुराकर माखन खाते हैं, गोपियों की मटकी तोड़ते हैं और खेल-खेल में असुरों का सफाया भी कर देते हैं। इसी प्रकार उनकी रासलीला, गोपियों के प्रति प्रेम वाला स्वरूप भी मनमोहक है। इसी प्रकार उनका योगेश्वर रूप और महाभारत में अर्जुन के पथ-प्रदर्शक वाला रूप सभी को लुभाता और प्रेरणा देता है। अपनी लीलाओं में वे माखनचोर हैं, अर्जुन के भ्रांति-विदारक हैं, गरीब सुदामा के परम मित्र हैं, द्रौपदी के रक्षक हैं, राधाजी के प्राणप्रिय हैं, इंद्र का मान भंग करने वाले गोवर्धनधारी हैं। उनके सभी रूप और उनके सभी कार्य उनकी लीलाएं हैं। उनकी लीलाएं इतनी बहुआयामी हैं कि उन्हें सनातन ग्रंथों में लीलापुरुषोत्तम कहा गया है। मान्यता है कि चौंसठ विद्याओं और सोलह कलाओं के ज्ञाता कहे जाने वाले कला मर्मज्ञ चंद्रवंशी श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्द्धरात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। धर्मग्रंथों में इसे जन्म के बजाय प्रकट होना बताया गया है। उनके अनुसार, इसी तिथि को कारागारगृह में भगवान विष्णु देवकी और वसुदेव के समक्ष चतुर्भुज रूप में शंख, चक्र, गदा और कमल लिए प्रकट हुए थे, किन्तु माता देवकी के अनुरोध पर उन्होंने शिशु रूप धारण कर लिया। यही कारण है कि कुछ लोग जन्माष्टमी को गोपाल कृष्ण का जन्मोत्सव कहते हैं, तो कुछ उनका प्राकट्योत्सव। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध के 51वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अपना परिचय इस प्रकार देते हैं: ब्रह्मा जी ने मुझसे धर्म की रक्षा और असुरों का संहार करने के लिए प्रार्थना की थी। उन्हीं की प्रार्थना से मैंने यदुवंश में वसुदेव जी के यहां अवतार ग्रहण किया है। अब मैं वसुदेव जी का पुत्र हूं, इसलिए लोग मुझे वासुदेव कहते हैं।' महाभारत के अश्वमेध पर्व में भगवान श्रीकृष्ण अवतार लेने का कारण बताते हैं, 'मैं धर्म की रक्षा और उसकी स्थापना के लिए बहुत सी योनियों में जन्म (अवतार) धारण करता हूं।' जन्माष्टमी पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। झांकियां सजती हैं, मटकी फोड़ प्रतिस्पर्धाएं होती हैं। 'गोविंदा आला रे' गूंजता है। लीला पुरुषोत्तम का प्रत्येक प्रसंग प्रेरणा प्रदान करता है। जब मन अशांत हो, तब भगवान श्रीकृष्ण की वाणी 'गीता' घोर निराशा के बीच आशा की किरण दिखाने लगती है। तभी तो श्रीकृष्ण को 'आनंदघन' अर्थात आनंद का घनीभूत रूप कहा जाता है। नंदघर आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की..। उन्होंने सिर्फ नंद के घर को आनंद से नहीं भरा, अपितु सभी के आनंद का मार्ग प्रशस्त किया।
भगवान श्रीकृष्ण का प्रत्येक रूप मनोहारी है। उनका बालस्वरूप तो इतना मनमोहक है कि वह बचपन का एक आदर्श बन गया है। इसीलिए जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के इसी रूप की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें वे चुराकर माखन खाते हैं, गोपियों की मटकी तोड़ते हैं और खेल-खेल में असुरों का सफाया भी कर देते हैं। इसी प्रकार उनकी रासलीला, गोपियों के प्रति प्रेम वाला स्वरूप भी मनमोहक है। इसी प्रकार उनका योगेश्वर रूप और महाभारत में अर्जुन के पथ-प्रदर्शक वाला रूप सभी को लुभाता और प्रेरणा देता है। अपनी लीलाओं में वे माखनचोर हैं, अर्जुन के भ्रांति-विदारक हैं, गरीब सुदामा के परम मित्र हैं, द्रौपदी के रक्षक हैं, राधाजी के प्राणप्रिय हैं, इंद्र का मान भंग करने वाले गोवर्धनधारी हैं। उनके सभी रूप और उनके सभी कार्य उनकी लीलाएं हैं। उनकी लीलाएं इतनी बहुआयामी हैं कि उन्हें सनातन ग्रंथों में लीलापुरुषोत्तम कहा गया है। मान्यता है कि चौंसठ विद्याओं और सोलह कलाओं के ज्ञाता कहे जाने वाले कला मर्मज्ञ चंद्रवंशी श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्द्धरात्रि के समय रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। धर्मग्रंथों में इसे जन्म के बजाय प्रकट होना बताया गया है। उनके अनुसार, इसी तिथि को कारागारगृह में भगवान विष्णु देवकी और वसुदेव के समक्ष चतुर्भुज रूप में शंख, चक्र, गदा और कमल लिए प्रकट हुए थे, किन्तु माता देवकी के अनुरोध पर उन्होंने शिशु रूप धारण कर लिया। यही कारण है कि कुछ लोग जन्माष्टमी को गोपाल कृष्ण का जन्मोत्सव कहते हैं, तो कुछ उनका प्राकट्योत्सव। श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध के 51वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण अपना परिचय इस प्रकार देते हैं: ब्रह्मा जी ने मुझसे धर्म की रक्षा और असुरों का संहार करने के लिए प्रार्थना की थी। उन्हीं की प्रार्थना से मैंने यदुवंश में वसुदेव जी के यहां अवतार ग्रहण किया है। अब मैं वसुदेव जी का पुत्र हूं, इसलिए लोग मुझे वासुदेव कहते हैं।' महाभारत के अश्वमेध पर्व में भगवान श्रीकृष्ण अवतार लेने का कारण बताते हैं, 'मैं धर्म की रक्षा और उसकी स्थापना के लिए बहुत सी योनियों में जन्म (अवतार) धारण करता हूं।' जन्माष्टमी पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। झांकियां सजती हैं, मटकी फोड़ प्रतिस्पर्धाएं होती हैं। 'गोविंदा आला रे' गूंजता है। लीला पुरुषोत्तम का प्रत्येक प्रसंग प्रेरणा प्रदान करता है। जब मन अशांत हो, तब भगवान श्रीकृष्ण की वाणी 'गीता' घोर निराशा के बीच आशा की किरण दिखाने लगती है। तभी तो श्रीकृष्ण को 'आनंदघन' अर्थात आनंद का घनीभूत रूप कहा जाता है। नंदघर आनंद भयो, जय कन्हैयालाल की..। उन्होंने सिर्फ नंद के घर को आनंद से नहीं भरा, अपितु सभी के आनंद का मार्ग प्रशस्त किया।
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